मैंने मुंबई को बोहोत करीब से देखा है...
रात की मेहबूबा है मुंबई..
रात 'underworld' के 'don' की तरह चुपके से मिलने आती है...
और सुबह होने के पहले निकल जाती है..
उसे डर है के कही सूरज की किरण उसे पकड़ न ले....
मैंने कई बार देखा है साहिल पे मुंबई ko...
हात में फिल्म की दो टिकेट लेके रात का इंतज़ार करते हुए...
उसकी पसंदीदा जगह पे खाना खाते है...
फिर फिल्म देखते है किसी 'typical mumbaikar' की तरह...
फिर जब रात अपने दुसरे पहर से गुज़रती है..
तो समंदर के बिस्तर पे दोनों के जिस्म यूँ मिल जाते है जैसे कभी जुदा न थे..
एक अजीब सी खामोशी मचलती है शेहेर में...
कुछ देर मुंबई भी सोती है जब रात सुस्ताने लगे...
पर रात का जाना तो तय था...
चुपके से मुंबई का हात अपने बदन से उठाकर...
मुंबई का माथा चूमकर रात निकल जाती है...
कोई नन्ही सी सबा आकर मुंबई को जगाती है...
रात फिर कल साथ रहने का वादा तोड़कर चली गयी...
कुछ देर यूँही साहिल पे बैठी रहती है मुंबई...
मैंने देखा है उसे गुमसुम उदास भी...
शायद इसीलिए सुबह सुबह मैंने अक्सर मुंबई को तनहा देखा है...
मुंबई और रात का यह रोमांस कई सदियों से चला आ रहा है....
मुंबई रात में उस बार बाला की तरह नज़र आती है जो सज धज के किसी का इंतज़ार करती हो...
कई बार मुंबई ने कहा रात को शादी के लिए...
पर रात भी क्या करती उसका विदेश में भी तो एक परिवार है....
मुंबई को न जाने कितने लोगो ने धोका दिया है!!!!