Sunday, April 24, 2011

20 x 40 का कमरा...

वोह 20 x 40 का तुम्हारे घर पे जो  एक कमरा है..
अब सौंधी सी रौशनी से सजा है...
सारे घर के कमरे बड़े ही हैरत से तकते है उसको... जैसे किसी नई दुल्हन को घरवाले तकते है..
न जाने क्या बात है उसमे... 
सुकून को आराम है वहाँ...
दो किनारों पे जो तुमने रौशनी रखी है उसके दम पे जैसे उसकी साँसें चलती है...
कुछ बोहोत ही हलके और नाज़ुक लफ्ज़ घुमते है इस खामोश रौशनी में...
जिंदगी की हर शिकायत यहाँ आकर बड़ी ही छोटी लगती है...
किसी बुज़ुर्ग की तरह अपने तजुर्बे से सब ग़मों को खिंच लेता है और अपने दामन में समेट लेता है...
वोह रौशनी के स्त्रोत तुम्हे बड़ी ही नजाकत से तकते है...
तुम्हारी आँखें उस कमरे में गहनों की तरह चमकती है...
पर जब तुम उदास होती हो तो यह कमरा नाराज़ सा लगता है...
तुम्हारी हसी उसकी नब्ज़ है...
हर पल मुस्कुराते रहो के तुमसे ही ये कमरा रोशन है....

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