जब सरोद लेकर बैठते हो तो यूँ महसूस होता है
जैसे कोई योगी अपनी साधना कर रहा हो
और जब स्वर निकलता है तो जैसे दूर पहाड़ों पर अज़ान की आवाज़ गूंजे
जब किसी राग को बजाते बजाते आँखें बंद करके ऊपर देखते हो
तो जैसे गहरे ध्यान में जा रहे हो
अनगिनत गूंगे स्वरों को राग की शक्ल दी है तुमने
अनगिनत स्वरों को उनकी मंजिल देके मुक्त किया है
यूँ ही कभी कुछ गुनगुना लिया और कुछ देर बाद उसको एक राग में ढाल दिया
मौसिकी जैसे तुम्हारे अन्दर बसी है है और सारा ब्रह्माण्ड उससे रोशन है
सरोद की दुनिया के लिए नेमत हो तुम
सरोद के मुहाफ़िज़ हो तुम...
मौसिकी का कोहिनूर हो तुम...
जैसे कोई योगी अपनी साधना कर रहा हो
और जब स्वर निकलता है तो जैसे दूर पहाड़ों पर अज़ान की आवाज़ गूंजे
जब किसी राग को बजाते बजाते आँखें बंद करके ऊपर देखते हो
तो जैसे गहरे ध्यान में जा रहे हो
अनगिनत गूंगे स्वरों को राग की शक्ल दी है तुमने
अनगिनत स्वरों को उनकी मंजिल देके मुक्त किया है
यूँ ही कभी कुछ गुनगुना लिया और कुछ देर बाद उसको एक राग में ढाल दिया
मौसिकी जैसे तुम्हारे अन्दर बसी है है और सारा ब्रह्माण्ड उससे रोशन है
सरोद की दुनिया के लिए नेमत हो तुम
सरोद के मुहाफ़िज़ हो तुम...
मौसिकी का कोहिनूर हो तुम...