Tuesday, June 22, 2010

तस्वीर...

मैंने तुम्हारा एक स्केच 'frame' करना चाहता हूँ
पर जैसे ही 'frame' करता हूँ...
रंग फिंके पड़ जाते है..
आँखों की चमक उड जाती है...
कागज़ के टुकड़े पत्तो की तरह हवा में बिखर जाते है...
कांच टूट के तिनको में समां जाती है...

सच में... तेरे हुस्न को एक 'frame' में बांधे रखना कितना मुश्किल है...

Thursday, June 17, 2010

रौशन करें कायनात....

देर रात जब बोहोत जोरों से बरसात हो.. 
तो चलेंगे ऊपर बादलों पर...
बादलों पर बैठ के देखे हम निचे की बरसात का नज़ारा.. 
और जब 'street lights' बंद हो जाए मुंबई के 'highway' पर...
तो अपनी परछाई देखे गीली सी रोड पर...
फिर जब सूरज निकले तो कई हज़ार बूंदों की बना के 'water slide'...
कूद पड़े दरिया में छपक के...
और तैरते रहे मछलियों की तरह गहरे दरिया में...
मोतियों की खोज में...
फिर जब बारिश बंद हो और एक मद्धम सी हवा चले साहिल पे...
अपने बदन को सुखाते हुए पड़े रहे आसमान को तकते किनारे पर...
फिर जब दोपहर गुजरे सर पर से किसी परिंदे की तरह और शाम आये थकी हारी काम पर से लौटी औरत की तरह...
गूम हो जाएँ उस सुरमई रोशनी में और दिखाई न दे...
चलो न उसी रोशनी से रौशन करे कायनात और बस मुस्कुराते रहे....
और बस मुस्कुराते रहे...

Saturday, June 5, 2010

पहली बूँद....

आखिर कार वोह आ गयी...
बिजली के तारों से बचते बचाते..
पेड़ों की शाखों से नज़र चुराके...
बादलों के पिंजरे से आजाद...
लम्बी लम्बी इमारतों से कूद के..
घरों के छज्जों से फिसल के....
बारिश की वोह पहली बूँद... कुछ इस तरह आती है ज़मीन पर...
जैसे कोई बच्चा स्कूल से लौटता है और कल से उसकी छुट्टियाँ चालू होने वाली हों...