आज भी सर्दियों का वोह दिन याद आता है.. जब मैंने तुमको पहली बार देखा था...
जब तुम वोह सफ़ेद सलवार-कमीज़ और लहेरिया दुपट्टा पेहेन के घर से निकली थी..
उस दुपट्टे को तुम मफलर की तरह ओढ़ी हुई थी...
ऐसा लग रहा था जैसे दिल्ली की सारी सर्दी सहमी हुई है और उस मफलर से जैसे उसका हौसला बढ़ रहा हो...
तुम्हारे सारे बदन को छुने को जैसे कोहरा बेकरार था...
और तुम कोहरे को हटा के आगे चल रही थी जैसे कोई धुएं को हटाए..
मेरी आँखों को सिर्फ तुम नज़र आ रही थी और मै गा रहा था...
'धागे तोड़ लाओ चांदनी से नूर के... घूंघट ही बना लो रोशनी से नूर के...'
Sunday, April 18, 2010
Saturday, April 10, 2010
5 day working..........
कभी कभी दिन भी बड़े आलसी निकलते है...
सूरज ऐसे निकलता है जैसे बादलों की चादर ओढ़ के सोया पड़ा हो...
हवाएं ऐसे चलती है जैसे कोई खाने के बाद टेहेलता हो...
दोपहर ऐसे रुकी रुकी सी लगाती है जैसे शतरंज का खेल....
शाम भी ऐसे आती है जैसे सारा दिन उसने जाग के काटा हो...
और चाँद ऐसे उगता है जैसे बोहोत ज्यादा सोने के बाद नहा के 'weekend' पार्टी में जा रहा हो..
रात ऐसे उतरती है जैसे कोई ख्वाब उतारे अरमानो के साहिल से....
सारे माहोल में एक अजीब सी 'lethargy' फ़ैल जाती है...
आज कल पूरी कायनात का '5 day working' है....
सूरज ऐसे निकलता है जैसे बादलों की चादर ओढ़ के सोया पड़ा हो...
हवाएं ऐसे चलती है जैसे कोई खाने के बाद टेहेलता हो...
दोपहर ऐसे रुकी रुकी सी लगाती है जैसे शतरंज का खेल....
शाम भी ऐसे आती है जैसे सारा दिन उसने जाग के काटा हो...
और चाँद ऐसे उगता है जैसे बोहोत ज्यादा सोने के बाद नहा के 'weekend' पार्टी में जा रहा हो..
रात ऐसे उतरती है जैसे कोई ख्वाब उतारे अरमानो के साहिल से....
सारे माहोल में एक अजीब सी 'lethargy' फ़ैल जाती है...
आज कल पूरी कायनात का '5 day working' है....
Friday, April 2, 2010
targets........
या खुदा यह तेरा कैसा दस्तूर है....
कोई 'race' में दौड़ता है तो कोई दो कदम चल नहीं पाता....
किसी के पास आलिशान बंगला है और किसी के पास शान की एक झोपडी...
कोई दिन में चार बार खाना खाता है तो किसी को चार निवाले नहीं मिलते....
कुछ लोगों के पास कपडे रखने के लिए जगह नहीं.. तो कुछ लोगों के लिए कपडे पेहेनना भी एक ख्वाब है....
क्या तेरा भी कोई 'performance appraisal' सिस्टम है?... जो कहता है 'perform or perish'...
क्या तुझे भी 'targets' दिए है?....
शायद सालाना 'targets' हो जाने के बाद तेरी रहमत बंद है....
उफ्फफ्फ्फ़.... 'targets' ने तो खुदा को भी नहीं छोड़ा....
कोई 'race' में दौड़ता है तो कोई दो कदम चल नहीं पाता....
किसी के पास आलिशान बंगला है और किसी के पास शान की एक झोपडी...
कोई दिन में चार बार खाना खाता है तो किसी को चार निवाले नहीं मिलते....
कुछ लोगों के पास कपडे रखने के लिए जगह नहीं.. तो कुछ लोगों के लिए कपडे पेहेनना भी एक ख्वाब है....
क्या तेरा भी कोई 'performance appraisal' सिस्टम है?... जो कहता है 'perform or perish'...
क्या तुझे भी 'targets' दिए है?....
शायद सालाना 'targets' हो जाने के बाद तेरी रहमत बंद है....
उफ्फफ्फ्फ़.... 'targets' ने तो खुदा को भी नहीं छोड़ा....
Thursday, April 1, 2010
'haunted'....
आज कल तुम मुझे भूतों की तरह हर जगह नज़र आने लगी हो....
कभी किसी कोने में मुस्कुराते हुए खड़ी होके मुझे देख रही हो...
कभी अचानक आँखों के सामने से गुज़र जाती हो...
कभी तुम्हारी हसने की आवाज़ सुनाई देती है जैसे किसी हवेली में किसी की आवाज़ सुनाई दे...
कभी लोगो की आवाज़ में तुम्हारी आवाज़ सुनाई देती है....
कभी चुप के से कानो में कुछ कह जाती हो...
खुशबू की तरह तुम्हारा साया मंडराता है मेरे दिल-ओ-दिमाग पर...
मेरा जहां तेरे इश्क से 'haunted' है.....
कभी किसी कोने में मुस्कुराते हुए खड़ी होके मुझे देख रही हो...
कभी अचानक आँखों के सामने से गुज़र जाती हो...
कभी तुम्हारी हसने की आवाज़ सुनाई देती है जैसे किसी हवेली में किसी की आवाज़ सुनाई दे...
कभी लोगो की आवाज़ में तुम्हारी आवाज़ सुनाई देती है....
कभी चुप के से कानो में कुछ कह जाती हो...
खुशबू की तरह तुम्हारा साया मंडराता है मेरे दिल-ओ-दिमाग पर...
मेरा जहां तेरे इश्क से 'haunted' है.....
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