Thursday, April 28, 2011

तेरी आँखें....

तेरी आँखें सब कुछ कहती है मुझसे....
तेरे मन का चेहरा बन रोज़ पलकों तले मिलती है मुझसे ..
आँख की कोर मे तैरती नमी में कुछ मजबूर अरमान मचलते नज़र आते है..
बात  करते  करते  मुझसे  जब  अचानक  नज़र  फेर  लेती  हो .. 
तो जिंदगी की किताब का वो बेरंग सा सफ्फ्हा चुपके से पलट देती हो...
खामोश बैठ के जब यूँ ही आसमान की तरफ देखती हो. ..
तो आसमान की तन्हाई तुम्हारी आँखों में उतर आती है...
कल जब सनसेट देखा था तुमने मुस्कुराके ..
तो शाम को तुम्हारे नैनो में ढलते देखा था...
और तुमने चुपके से अपनी आँखों में शाम को महफूज़ कर के रख दिया...
और चाँद को कहा कल ढलते ढलते मुझसे ले जाना...
जब खुल के हस्ती हो...
तो  एक  अजीब  सी  मासूमियत  भर  आती  है  आँखों में... 
और सारे माहौल में फ़ैल जाती है खुशबू की तरह...

कई बरसों से अपाहिज हूँ लफ़्ज़ों की बैसाखी पर...
आकर कभी आँखों से बात करो...
के ख़तम हो लफ़्ज़ों का ये शोर...

Wednesday, April 27, 2011

आसमान पे उम्र काटे...

चलो ना किसी दीन जब शाम जवान हो...
ख्वाहिशों के पर लगाके आसमान पे उड़ने चले...
परिंदों के झुण्ड के साथ आसमान की सैर करे...
फिर जब थक जाए तो बैठे किसी बादल पर...
और शाम की चाय पिए सूरज को ढलता देख ..
आसमान के कैनवास पर सुरमई शाम के रंगों से एक पेंटिंग बनाये....
उस हसीं जिंदगी की जो तुम्हारे दिल में है...
बिलकुल पाक और दिलकश...
फिर जब सूरज अलविदा कहदे और चाँद चमक  उठे...
तो चांदनी को सिरहाने रख कर लेटे रहे बादल पर....
और सुबह तक बस बातें करते रहे...
किसी पुरानी बात पे तुम्हारे लबों पर वही गुनगुनाती हसी आये....
और वोह बस आसमान पर गुनगुनाती रहे 'Background music' की तरह..
चलो ना इसी तरह एक उम्र काटें आसमान पर...
और जब वक़्त का कारवां ख़तम हो...
तो एक साथ अगले जनम में जमीं पे उतर आये...

Sunday, April 24, 2011

20 x 40 का कमरा...

वोह 20 x 40 का तुम्हारे घर पे जो  एक कमरा है..
अब सौंधी सी रौशनी से सजा है...
सारे घर के कमरे बड़े ही हैरत से तकते है उसको... जैसे किसी नई दुल्हन को घरवाले तकते है..
न जाने क्या बात है उसमे... 
सुकून को आराम है वहाँ...
दो किनारों पे जो तुमने रौशनी रखी है उसके दम पे जैसे उसकी साँसें चलती है...
कुछ बोहोत ही हलके और नाज़ुक लफ्ज़ घुमते है इस खामोश रौशनी में...
जिंदगी की हर शिकायत यहाँ आकर बड़ी ही छोटी लगती है...
किसी बुज़ुर्ग की तरह अपने तजुर्बे से सब ग़मों को खिंच लेता है और अपने दामन में समेट लेता है...
वोह रौशनी के स्त्रोत तुम्हे बड़ी ही नजाकत से तकते है...
तुम्हारी आँखें उस कमरे में गहनों की तरह चमकती है...
पर जब तुम उदास होती हो तो यह कमरा नाराज़ सा लगता है...
तुम्हारी हसी उसकी नब्ज़ है...
हर पल मुस्कुराते रहो के तुमसे ही ये कमरा रोशन है....

इश्क...

इश्क रास्तों पे यूँही नचवाता  है...
कभी होटों पे बेवजह रुक कर मुस्कुराता है...
ज़हन में ग़ज़ल बन कर गुनगुनाता है...
सुनसान सडको पे भटकाता है देर रात तक...
आँख की चमक बन रोशन करता है चेहेरे को...
अजनबियों से बात करवाता है...
आँखों में डूबोता है...
इबादत की आदत लगवाता है...
अजीब बीमारी है ये...
दर्द से ज्यादा एहसास का मजा देती है...





मातम...

कल रात उस सितारे की अचानक मौत हो गई...
जो चाँद से मोहब्बत करता था...
चाँद यह खबर सुन कर कुछ सुन्न सा चमकता रह गया...
रात भर अपने आप को यकीं दिलाने की कोशिश करता रहा के अब वोह नहीं है...
कल  चाँद को धरती को देर तक तकते देखा था मैंने...
न कोई आँसूं टपका कही न कोई चीख...
शायाद अबतक वोह बात दिल तक उसके उतरी नहीं...
जैसे जैसे सब बादलों को खबर मिली तो सफ़ेद लिबास पेहेन कर चाँद के घर पहुँच रहे थे...
उस दिन बोहोत से बादलों को आसमान पे शोक मनाते देखा था मैंने...
एक ही मुद्रा में खामोशी की सफ़ेद चादर ओढ़े हुए...
जाने वाले के ग़म में बहुत देर तक आंसू बहाते रहे...
हाँ कल दिन भर बारिश होती रही...
फिर कुछ देर बाद जो हवा चली तो सब उठ के अपने सफ़र पे चल पड़े...
यह सोचकर के अब घर वालों को अकेला छोड़ दो...
और आसमान साफ़ था और चाँद फिर अकेला आसमान पे भटकता रह गया...
उस रात मैंने चाँद को नहीं देखा आसमान पे, पर कुछ चीखें ज़रूर सुनी थी बिजली की...
कुछ लोगो ने देखा था चाँद को लम्बे सफ़र पे जाते...
शायद उसकी आस्तियां बहाने गया होगा आकाश गंगा की तरफ...

जिंदगी के साथ मौत का भी खेल सब जगह एक जैसा है...
मौत के बाद का मौन आसमान और जमीं पर एक जैसा लगता है.....


उम्र...

उन दोनों में अब छोटे बच्चे की तरह झगड़े होते है...
पुरानी बातों को लेकर अब मुस्कुराके ताने मारते है....
कुछ पुरानी आदतें जो पहले दिल को भाति थी....
अब एक दुसरे की शिकायत करने के काम आती है...
अपने पोते को पूछते है की हम दोनों में से कौन अच्छा लगता है...
वो बाज़ी मारके खुश होती है और वोह हर बार हारना चाहता है...
पहले जो इश्क ग़ज़लों में बयान होता है...
अब वोह बस इशारों में अदा हो जाता है...
'fitness' के बहाने निकलते है 'walk' पर...
पर असल में थोड़ी 'privacy' चाहते है जो अब घर पे बच्चों के साथ नहीं मिलती...
अक्सर दोनों को मैंने देखा है उस जगह पे जाते... 
जहां वो पहली बार मिले थे...
कभी अकेले में पुराने दिन याद करके थोड़ी  देर जवान होते है...
वक़्त जो पहले एक दुसरे के बाहों में कटता था...
अब एक दुसरे को दवाई लेने की याद देने में निकल जाता है...
रात को बिस्तर पर सोने से पहले कहते है की तुझसे से पहले तो मौत मेरा ही रास्ता काटेगी...
और जब करवट लेते है तो सहम जाते  है के तेरे बिना कैसे गुज़ारा होगा...


एक उम्र साथ बिता कर इश्क कितना मासूम हो जाता है...
थोडा नमकीन थोडा मीठा...
लफ़्ज़ों से परे पर खामोशी से रोशन.....