Sunday, April 24, 2011

इश्क...

इश्क रास्तों पे यूँही नचवाता  है...
कभी होटों पे बेवजह रुक कर मुस्कुराता है...
ज़हन में ग़ज़ल बन कर गुनगुनाता है...
सुनसान सडको पे भटकाता है देर रात तक...
आँख की चमक बन रोशन करता है चेहेरे को...
अजनबियों से बात करवाता है...
आँखों में डूबोता है...
इबादत की आदत लगवाता है...
अजीब बीमारी है ये...
दर्द से ज्यादा एहसास का मजा देती है...





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