Friday, August 28, 2009

वही जगह

उसी जगह पर रोज़ चला आता हूँ मैं
जहाँ पर पुरी शब् इंतज़ार किया था मैंने तुम्हारा
तुमने कहा था मैं किसी और की हो चुकी हूँ
और उस शक्स को तुम्हारे वाडे अच्छे नही लगते
तुम्हे भी अच्छे नही लगते; तुमने यह तो नही कहा था

टुटा मेरा ख्वाब ले गया उडा के उसको कोई मौसम का झोंका
इसीलिए हर शब् तुम्हारा आज भी इंतज़ार करता हूँ
की कोई इमानदार मौसम आएगा मेरा ख्वाब दे जाएगा
मुझे यकीं था एक दिन तुम जरूर आओगी

फिर मौसम बदला, लम्हे गुज़रे
दिन रात का तो पता नही था पर, हाँ वक्त को जरुर जाते देखा था
सावन के बादलों पर देखता था तेरे आने के संदेसे
बारिश के पानी में देखता था तुम्हारे चेहरे
सर्दियों में रात में तुमने दिए हुए कम्बल को ओढ़ कर वही सो जाता था

ऐसे ही कुछ साल बीते, कुछ दिनों बाद उसी जगह पर एक बूढा शक्स जिंदगी जी यादें लिए बैठा नज़र आया
बाल बढे हुए, दाढ़ी जैसे छुपाये हजारों वादों के अधूरे लम्हे
एक आवाज़ से वो कुछ अपने ख्वाबों से बाहर आया, एक और ख्वाब से मिलने
मुझे मालूम था तुम जरूर आओगी
शायद बूढा होने पे मैं कुछ ऐसा ही लगूंगा............

"canteen"

किसी दिन कॉलेज शुरू होने से पहले जब हवा में एक अजीब सी खामोशी होती है
तब तुम कैंटीन में आना जब लोगो से ज्यादा खाली टेबल हो
हाथ हिलाकर मुस्कुराना और बिना बताये मेरी टेबल पर एक बोहोत ही गरम चाय के प्याले के साथ आकर बैठ जाना
आकर यूँ बात करना जैसे कोई कहानी सुना रही हो
तब में अपने जिस्म से बाहर आकर अपनी रूह से तुम्हे देखना चाहता हूँ
तुम्हे चारों तरफ़ से देखना चाहता हूँ जैसे कोई किसी खुबसूरत चीज़ को पहली बार देखे
तुम्हारी जुल्फ से खेलना चाहता हूँ
तुम जब मुस्कुराती हो तो उस आवाज़ को मैं हमेशा के लिए कैद करना चाहता हूँ जैसे कोई तितली के पर किताबों में रखे
तुम बात कर रही हो और मैं सुन रहा हूँ यह मंज़र मैं कुछ यूँ देखना चाहता हूँ जैसे कोई ग़ज़ल को पढ़ के मुस्कुराए
उस बोहोत ज्यादा गरम चाय को तुम जब ठंडा कर रही हो तो इस ग्लास से उस ग्लास तक जैसे कहानी के किरदारों की शक्लें बना रही हो
उस गरम चाय की भाप जब तुम्हारे चेहरे पर से गुजरेगी तो ऐसे लगेगा जैसे चाँद पर बादल चल रहे हो
थोडी देर के बाद जब कहानी ख़तम हो जायेगी और मैं कुछ होश में आऊंगा और तुम्हारे सामने हैरान सा नज़र आऊंगा
आस पास का शोर कुछ बढ़ गया होगा लोगों की आबादी भी बढ़ गई होगी
पर मेरी रूह वही खड़ी थी
किसी दिन आकर फिर से कोई कहानी सुनाओ तुम
के रूह में जान आ जाए!!!!

त्रिवेणी

कभी एक दिन मेरे मौला अपनी मूरत से बाहर आकर चारो ओर बिखर जाना

हर बन्दा तुझे देख सके तेरे होने पर न सवाल हो

आजकल कानून साबुत मांगता है!!!

Saturday, August 22, 2009

दिल्ली की वोह सुबह..........

दिल्ली में बिताई हुई एक सुबह जामा मस्जिद के पास के नुक्कड़ पे
चाय की चुस्की लेते हुए बिताये हुए कुछ सब्ज़ लम्हे मुझे हमेशा तेरा नाम याद दिलाते है

तुम जब अपना नाम कहती हो तो ऐसे लगता है जैसे मस्जिद में कोई अल्लाह का नाम ले

"earphone"

कभी कभी सोचता हूँ फ़ोन या किसी "mp3" प्लेयर को जो लगाते है उसे "earphone" क्यूँ कहते है?
शायद जो सब को कुछ सुनाता है वोह ख़ुद भी कभी रात में अकेले में सुनता होगा वोह गीत
इसलिए शायद उसे ear-phone कहते है!!!!!!

दबे पाँव............

सावन का महिना जब जवां होता है
तो शाम होते ही आसमान पर सुन्हेरे रंग खिल जाते है
चाँद कुछ और शबनमी नज़र आता है
हवा में इक अजीब सी खामोशी सुनाई देती है
सुबह का आलम तो यूँ लगता है जैसे सूरज की किरने पानी से धुल कर निकली हो
आसमान पर एक हलकी सी धुंद सी जम जाती है जो हर दिन थोडी थोडी बढती रहती है जैसे कोई चूल्हे में हवा फूँके,
मैं सावन की तारीफ़ नही कर रहा हूँ
ठण्ड का मौसम दबे पाँव किसी चोर की तरह आता है और धीरे धीरे धरती को अपनी आघोष में लेता है
कुछ उसी तरह जैसे तुम दबे पाँव आकर मौसम को बदलती हो...............

श्रीरंजनी सेन के लिए...

कभी कभी यूँ ही सोचते सोचते तुम्हे कितने सवाल याद आते हैं
जिनका जवाब तुम खामोशी से कितनी ज़ोर से देती हो
रिश्ते, अल्फाज़, यादें, ख्वाब, और न जाने कितने हतियार है तुम्हारे पास
सबको लेकर चलती हो तो ऐसा लगता है के नई दुनिया बना रही हो
बादल जैसे चलते है आसमान की चादर पर
कलम को हाथ में उठाकर तुम कुछ उसी तरह लिखती हो ..................

Saturday, August 15, 2009

आज भी........

आज भी तेरे साथ बिताये हुए बीते लम्हों को याद करके मुस्कुरा लेता हूँ
आज भी दिल में उम्मीद लिए तेरी राह देखता हूँ,
आज भी दिन की शुरुवात तेरी तस्वीर देखके करता हूँ

लोग पागल कहने लगे है मुझको
बड़े ही अजीब लोग है तेरे शेहेर के
मुझको दीवाना तक मानने को तैयार नही.......

एक शाम

ऐसे ही किसी दिन एक शाम आए, हब सब मुसीबतों को कही दूर छोड़ आए
तुम तुम और बस तुम रहो मेरे पहलु में, मै गाऊ कोई ग़ज़ल तेरे लिए
और बस बरसात हो जाए

खिड़की के दोनों तरफ़ मै और तुम खड़े हो
तुम शरमाई सी खड़ी रहना, मै घबराया सा, जैसे हम पहली बार मिले थे
तुम अपने बालों को सँवारने की कोशिश करो और कहीं से हवा का झोंका आए
तुम्हारा ध्यान न हो और मैं चुपके से तुम्हारे बालों को सवार जाऊ
और तुम्हारे चेहरे पर बस बस और बस एक मद्धम सी मुस्कान आए

और फिर तुम एक छोर से उगते हुए चाँद की मदहोश जवानी पे ज़रा नज़र  डालना
और मै ढलते हुए सूरज की खामोश रौशनी को अपनी आँखों में भर लू
हम आँखों में आँखे डाल कर खड़े रहे
तुम्हारी चाँद सी जवानी और मेरी उन्ही खामोश आँखों में फिर वोही खिचाव आए
हम एक दुसरे के करीब आते जाए
और चुपके से रात हो जाए.....................

खुद्दारी

किसी आलिशान से जगमगाते "mall" के बंद किसी दुकान के दरवाज़े के निचे वो घंटो यूँ ही बैठी रही
उसके पास एक पुरानी सी बोतल में में पुराना सा पानी था
सामने उसके मंज़र था खाने का, पिने का, मस्ती का,
कमाल की लड़की थी वो, आँख में उसके आंसू भी थे और होटो पर एक मद्धम सी मुस्कान भी
अपनी किस्मत पे वोह आंसू बहा रही थी और सामने वाले मंज़र पर हस रही थी
भूक की लौ उसकी आँखों में जल जल कर पिघल रही थी
वो अन्दर ही अन्दर चीख रही थी
आस पास के लोग उसको देखकर और मज़े से खा रहे थे
किसी की भी नज़र तो छोड़ो आँखे भी नही गई उस पर
उसे भूक तो बोहोत लगी थी, उसके साथी लोगो से मांग कर अपनी भूक मिटा रहे थे
पर उसकी खुद्दारी तो देखो वो भिक भी न मांग सकी
अकेली पड़ गई थी बोहोत, उसकी बोतल सिर्फ़ वफ़ा निभा रही थी किसी पागल के कुत्ते की तरह
आज उसने फिर एक रात पानी पि कर ही गुजारी थी...............

Friday, August 14, 2009

एक नज़्म

सावन के महीने में सूरज ढलने पर बरसात हो
बोहोत देर न हो कुछ देर ही हो
में भीगा हुआ घर पर आऊ
मेरे देर से आने पर तुम नाराज़ हो
ये तो तुम्हारी आवाज़ से ही पता चलता है

रूठ कर तुम खिड़की के पास खड़ी हो
इतने में रौशनी गूम हो जाए
मैं भी तुमसे रूठ के दुसरे कमरे में चला जाऊं
कुछ देर बाद घने अंधेरे में मैं तुम्हारे पास आऊ
चाँद को खिड़की में से देखूं
किसी मोबत्ति की हलकी सी लौ का साथ हो
और बस मैं गाता जाऊं
"चौधवीं का चाँद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो"
और उसी वक्त रौशनी आए
और तुम मुस्कुरा दो तो क्या बात हो

त्रिवेणी

अक्सर होता है सावन के महीने में
अचानक बरसात की एक बोछार आती है और अचानक रुक भी जाती है

सावन का महिना बिल्कुल मुझ जैसा लगता है


किसी लम्बी सी इमारत के "top floor" की खिड़की से जब मैं निचे देखता हूँ
तो लोगो की तरह सब रोज़मर्रा की मुश्किलें, झमेले भी कितने छोटे लगते है, सुकून सा लगता है

मुंबई में "top floor" पर घर की कितनी एहमियत है

लंबा साल

ये साल बोहोत लंबा था
साल के पहले दिनों में हम पहली बार मिले
दूसरी बार बातें की, फिर दिल मिले
और तीसरी बार हम बिछड़ जायेंगे यह कभी सोचा न था
ये साल बोहोत लंबा था.......

कितनी बातें कही और बोहोत सी कहनी थी
पर देखा तो होटो पर वोह सारी बातें सहमी हुई थी
बरसात में कीचड़ से गुज़रते वक्त फिर हाथ आगे बढाया
पर इस बार हात में तेरा हात न था
ये साल बोहोत लंबा था........

तुम्हारी आँखें बोहोत खुबसूरत थी
बोहोत ही कम तारीफ़ की थी मैंने
उन आंखों में डूबना चाहता था
इस जिंदगी का वोही एक किनारा था
ये साल बोहोत लंबा था....

रोज़ तुम्हे देखने के लिए चला आता था
पर में न रुक पाया तुमने न कभी रोका
हाँ, पर खामोशियों को वहाँ खेलते जरुर देखा था
ये साल बोहोत लंबा था.....

साल में कुछ ऐसे भी दिन थे
के हर वेहेम यकीं होता था
तुम्हारी तस्वीर से बातें करता था
और बोहोत से दिन ऐसे भी आए
के तुम्हारी तस्वीर को देखते देखते सो जाता था
ये साल बोहोत लंबा था........

कितने दिन हो गए तुम्हे देखा नही, महसूस नही किया, तुम्हारी सुरमई आवाज़ नही सुनी
कितनी राते हो गई तुम्हारी याद में मई रोया न था,
उफ़ ये साल सच में कितना लंबा था......
ये साल बड़ा तनहा था......

किसी दिन जब तुम मिलोगी

किसी दिन जब तुम मिलोगी
किसी पहाड़ के ऊपर चलेंगे
कुछ ऐसे वक्त में जब सूरज अपनी आखरी साँसें गिन रहा हो
और चाँद कुछ ऐसे निकले जैसे किसी छोटे बच्चे की नींद खुली हो

तब मैं तुम्हारे सामने आकर तुम्हारे कंधे पे हात रख कर
उस सूरज को तुम्हारी आंखों में डूबता देखना चाहता हूँ

उसी वक्त एक ठंडी हवा का झोंका आए
कुछ इस तरह जैसे जलते सूरज पर कोई पानी के कतरे फ़ेंक गया हो
जब तुम अपनी जुल्फे संवारोगी
तब मैं उस चाँद को देखना चाहता हूँ
हाय!! कितना शर्मा जाएगा वो चाँद तुमको देखकर

sunset

जब कभी मैं सनसेट देखता हूँ
तो ऐसे लगता है
मानो हम तुम बोहोत पास बैठे हो
और तुम मेरे काँधे पे सर रख के
नींद की आघोष में जा रही हो

और सूरज ढलने पर जब हल्का सा अँधेरा होता है
तब चाँद को देखकर यूँ लगता है
जैसे तुम मुस्कुरा रही हो नींद में

आज कल कुछ बदल गया हूँ

आज कल कुछ बदल गया हूँ
पहले हस्ते हस्ते आँख से आंसूं निकल आते थे
अब आंसू निकलते हैं तो हसने लगता हूँ

मेरा "सेंस ऑफ़ ह्यूमर" कहीं खो गया है
दिन भर उसको खोजता हूँ
पर कहीं नही मिलता मुझको
शायद तुम्हारे आँगन पर रख के भूल आया हूँ

हर बात में कमी सी लगाती है
अकेला सा रहने लगा हूँ
बंद एक कमरे में
कुछ लिखने की तमन्ना ही नही होती
के थोड़ा "practical " हो गया हूँ

किसी से बात करता हूँ तो ऐसे लगता है
जैसे उसका सहारा लेकर वक्त गुज़र रहा हूँ

लफ्ज़ मेरे दोस्त हुआ करते थे
आज कल मेरे साथ चलने से इनकार करते है
इसलिए अब सिर्फ़ तनहा हूँ

छोटे बच्चों के साथ बोहोत खेलता था मैं
उनको गोदी में लेकर घूमता था
आज कल उनपे चिल्लाता हूँ

कम लोगो से मिलता हूँ
कम लोगो में घुलता हूँ
हस्त कम हूँ
हसाता भी कम हूँ

अलग सा इंसान बन गया हूँ
मेरा ज़मीर आज कल सवाल करने लगा है मुझको
पर उसे मैं जवाब नही देता हूँ

तेरी जुदाई ने कितना बदल दिया है मुझको......

Wednesday, August 5, 2009

'rubberband'

रिश्ते 'rubberband' की तरह होते हैं ,
जितना खींचोगे उतने ही फासले बढ़ते जायेंगे,
और एक दिन टूट जायेंगे,

वैसे भी आज कल अच्छी क्वालिटी के 'rubberband' नही बनते

वोह शबनमी 'bag'

तुम्हारे काँधे पर लटकता हुआ वोह शबनमी 'bag' कुछ ऐसा लगता है

जैसे चाँद को उस 'bag' में डालकर पुरी दुनिया घुमने निकली हो,

छोटी छोटी बिंदियों जैसे सितारे लगे थे उस पर,

और चाँद की मद्धम सी रौशनी से तुम्हारी आँखें और भी खूबसूरत लग रही थी,

जैसे चाँद की परछाई किसी झील पर पड़ती हो,

छुप के बैठा था चाँद उस 'bag' में तुमको देखके शर्मा रहा था........