Saturday, January 28, 2012

Dustbin...

हर रोज़ कूड़ा डाल डाल के 'dustbin' भर गया है...
बदबू आ रही है जा कर कहीं इसे दफना दो...
कई दिन कुछ न लिखने पर मेरे दिल में भी.. 
एहसास का कूड़ा जम के दिल भर आता है...
और कागज़ पर मुझे भी अपनी नज्मे दफनानी पड़ती है...

५०० का नोट....

अजीब बेचैनी महसूस होती है...
जब किसी ऑटो में जाता हूँ.. और जेब में बस एक ५०० का नोट है...
पैसा होके भी गरीब होने का एहसास होता है...
ज़िन्दगी रुक जाती है और तभी चलेगी जब छुट्टा मिलेगा...
फिर दर दर भटकता हूँ छुट्टे की उम्मीद की लौ हाथ में लिए...
जैसे कोई भिकारी घूमता है सिग्नल पे...
दुनिया का असली चेहरा तब सामने आता है....
फिर कही से कोई बन्दा आ के छुट्टा देता है... 
जैसे मानो खुदा का करिश्मा है...
एक ५०० का नोट खुदा के होने का एहसास दिलाता है...
और हमने  बेवजह पैसे को खुदा मान रखा है....

नज़्म...

जब ख़याल एहसास की हद पार कर जाए....
और ख़याल को वजूद मिल जाए....
ऐसे ही कुछ वक़्त में लफ्ज़ वजूद को पकड़ कर..
मेरे ज़हन में खलबली मचाते है....
बेकरार लफ्ज़ जबीं से बार बार टकराते है...
जैसे कोई शुक्राणु बेताब हो बाहर निकलने के लिए...
जब दो जिस्म अपने आप में घुल गए हो...
और फिर कागज़ की सफ़ेद सतह पर...
नज़्म अपनी पहली सांस लेती है...


तेरी दो आँखें...

बोहोत ही फरीद है तेरी दो आँखें...
हर बार मिलती है तो एक सवाल पूछती है...
जैसे हर गुनाह का सबब पूछती हों...
तेरी रूह इन आँखों में उतर आई है...
मैंने कई बार इनको चीखते सुना है...
न जाने क्या दर्द है, यूँ लगता है बस अब रो दोगी..
कुछ छुपे हुए राज़ है हर इंसान के बारे में..
जब भी देखती हो तो खामोशी से कान में कह जाती है...
ढलते सूरज को देखती हो तो जैसे दोनों आँखें ध्यान लगाए बैठी हो...
और चाँद जब आये आसमान पे तो किसी दोस्त की तरह बस  पलके झपकाती है...
बड़ी ही दिलचस्प है तेरी आँखें...
खूबसूरत है दो आँखें.. फिर रोज़ इन आँखों से जी भर के देखो तो मुझको...

बाप...

जब कभी कोई बाप अपने बेटे को फ़ोन करता है....
तो कुछ बेमानी से सवाल करता है...
जिनका एक सा ही जवाब होता है...
पर असल में आवाज़ की गहराई नापता है अपनी औलाद की..
न जाने कैसे बस आवाज़ से ही हर चीज़ का इल्म है हर बाप को...
शायद जब पैदा किया था तो अपनी रूह का एक हिस्सा काट के...
माँ की कोख में रख दिया हो...

नासूर...

कुछ रिश्ते वक़्त की राह पे चलते चलते नासूर बन जाते है...
बिन माँ बाप के बच्चों की तरह पेश आते है...
चीखते है, चिल्लाते है, आदम खोर बन जाते है....
कुछ दिन तो शांत रहता ऐसा रिश्ता जिस्म में...
पर कुछ रोज़ बाद जिस्म के बाहर बदन पे फोड़ा बन के बाहर आता है..
उस 'allergy' की तरह जो बार बार आती है...
बोहोत कोशिश करने के बाद काबू में आते है...
किसी बिगड़े हुए हाथी की तरह...
तेरे रिश्ते को मैंने ज़हन के एक कोने में...
ज़ब्त की जंजीरों में बाँध के रखा है...
जैसे किसी पागल को बाँध के रखते है....
और तेरा जमाल भी कमाल है...
हर रोज़ वोह रिश्ता साबित करने की कोशिश करता है के मै पागल नहीं हूँ...
और रोज़ उसे में एक 'injection' देके सुला देता हूँ...

Monday, January 23, 2012

बेमानी...

खोकला सा इश्क पनपता है आज कल
सतह पर रोशन पर अन्दर से घना अँधेरा है....
कोई किसी से प्यार करे तो 'they are going around'...
पहले इश्क में 'going around' होता था अब going around में इश्क ढूँढ़ते है...
कुछ साल पहले न जाने कितने लक़ब देते थे एक दुसरे को ...
अब 'dude' और 'honey' में ही नाम ख़तम हो जाते है....
जो पहले ख़त लिखा करते थे प्यार भरे...
आज कल चंद बेमानी से 'sms' में बट जाते है...
शायद इसी लिए पोस्ट ऑफिस में तन्हाई गूंजती है...
साहिल पे अक्सर हसीन जिंदगी की तामीर किया करते थे लोग...
अब किसी 'cafe' में बैठ के 'weekend planning' करते है....
पहले बरसात होती थी तो चाय के साथ कोई खूबसूरत गीत होता था 'balcony' में...
आज दो कॉफ़ी के कप बात करते है और खामोशी बेचैन रहती है....
हर कोई जैसे अपनी असलियत छुपा के चल रहा है...
जिस दिन सामने आ गई उस दिन 'breakup' हो जाता है...
न जाने कहा खो गया सा है इश्क...
जजबात तो आज भी वही है...
जरा जाके कोई समझाए इश्क के मानी क्या है...
पर कोई सुनेगा???
सभी है घाफिल ज़िन्दगी के जिंदा होने पर....







Sunday, January 22, 2012

ग़ज़ल...

जजबात की रीया शक्ल लगा के घुमते है लोग...
रिश्ते नहीं बस कुछ देर साथ निभाते है लोग...

हर बात छुपा ली है सबने अपने बारे में...
सिर्फ अपने ही अन्दर जीते मरते है लोग...

खुद ही समझा रखा है ज़हन को दुनिया के बारे में...
रूह को जंजीरों में बाँध के रखते है लोग...
 
इश्क तो तेरा अल्लाह पाक सा था 'पराशर'...
कमबख्त इश्क के नाम पे जी बहला लेते है लोग...