Monday, February 27, 2012

सूरज...

हर रोज़ शाम को देखा है मैंने सूरज डूबते डूबते बड़ा ही मायूस रहता है...
पूरा दिन काम करके अपने घर लौटता है तो मुरझा सा जाता है...
पर जाते जाते आसमान पे अपने सुरमई रंग छोड़ जाता है..
जिसको शाम अपने चेहरे पे मल के चाँद का इंतज़ार करती है...
एक उम्मीद है इस लाल रंग में के कल फिर सवेरा होगा...
जैसे कोई मजदूर अपने घर लौटता है एक जेब में मायूसी और एक जेब में उम्मीद लिए...
शुक्र है सूरज अपना अनपढ़ गवार है...
पढ़ा लिखा होता तो देर रात तक काम करना पड़ता...
और दोनों जेबों में बस मायूसी होती....

Monday, February 13, 2012

खिड़कियाँ..

बोहोत बोलती है ये खिड़कियाँ.. 
मैंने देखा है उनको बोलते हुए... 
जब अक्सर आधी रात को उनकी आवाज़ मुझे जगा देती है... 
ऐसा लगता है जैसे किट्टी पार्टी में औरतें बोलती हो...
वोह एक खिड़की जो 'first floor' पे है... 
बहुत बार दीवार से टकराती रही... 
आज फिर उस घर के मिया बीवी में लड़ाई हुई थी...
वोह ऊपर वाली खिड़की जिसका कांच मोहल्ले के लड़कों ने छक्का मार के तोड़ दिया था... 
उसका कांच अभी भी वैसा ही था... 
एक बुढिया बैठा करती थी वहा... 
सुना है उस बुढिया को वृधाश्रम छोड़ आया है उसका बेटा...
तीसरे 'floor' पे एक अकेली सी खिड़की है... 
जो आज बस खुल के बस आहें भर रही थी...  
एक लड़की को बहुत बार किसीका इंतज़ार करते देखा था...  
आज कल शायद वोह नहीं आता...  
एक खिड़की थी सबसे जो निचे वाला घर था... 
अक्सर शाम को मैंने वहाँ पर उतरते देखा था... 
आज कल वोह खिड़की नहीं खुलती... 
सुना है उस घर के आदमी ने अपने साथ सबकी ज़िन्दगी का गला घोट दिया है... 

बोहोत शोर मचाती है ये खिड़कियाँ... 
बोहोत शोर होता है लोगो के घरों में आज कल... 
अक्सर इस शोर को सुन कर मुझे नींद नहीं आती...