Saturday, August 28, 2010

एहसास....

अक्सर रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में एहसास मुझे किसी साए की तरह छु जाते है...
और सेहेमे से यूँ सिने से लिपटे रहते है जैसे कोई घबराया सा बच्चा अपनी माँ के सिने से लिपटे...
मै उनको जरा धीरज दूँ इतने में दिमाग में बस जाते है...
और कहते है की हमें किसी महफूज़ कागज़ पे उतार दो...
हर एहसास अपने साथ कई कडवे मीठे जजबात ले आता है...
और जिद पे अड़ जाता है के इन्हें महसूस करो...
और कुछ दिन मेरे जिस्म में तैरते रहते है जब तक के उनका जी नहीं भरता...
मेरे जिस्म पे घिनोने दाग और मेरी रूह पे अपनी एक छाप छोड़ जाते है...
जैसे मेरे जिस्म को 'hijack' कर लिया हो...
कितनी मर्तबा कोशिश की इन्हें समझाऊं के तुम्हारा कोई वजूद नहीं...
मुझ पे हस के कहते है के जब तक हमको तुम मुक्त न करो तब तक तुम भी इस जाल में फसे रहोगे...
इन एहसासों से शापित हूँ मै....
इस श्राप से कब मुझे मुक्ति मिलेगी?

सुबह...

कभी कभी सावन के महीने में सुबह ऐसी निकलती है...
के जैसे कल रात के साथ देर तक बात करके सुबह जल्दी उठी हो...
अभी अभी नहा के बाहर आई हुई सी लगती है और जिस्म अभी भी सुखा नहीं...
हलकी हलकी सी बूंदे गिरती रहती है मानो आसमान पर अपने कपडे सूखने के लिए रक्खे हो...
एक कोहरा सा छाया रहता है... शायद जिस चूले पर नहाने का पानी गरम किया था...
उसको बुझाना भूल गयी हो...
एक सौंधी सी हवा गुज़रती है जैसे किसी 'hair dryer' से अपने बाल सुखा रही हो...
साफ़ सफ़ेद बादलों के कपडे पेहेन के निकलती है काम पर...
और सूरज के उठने का इंतज़ार करती है जैसे बस स्टॉप पे कोई बस का इंतज़ार करे...
सूरज के उठते ही दिन के सब काम उसके हाथ पर रख कर....
शाम को लाने आसमान की तरफ निकल जाती है...

Sunday, August 22, 2010

त्रिवेणी...


आज कल उसको भी मॉडल बनना है... हर रोज़ अपना एक नया 'portfolio'  बनाता  है....
शाम को सारे फोतोग्रफेर्स को बुलवाके अपनी खूबसूरत तस्वीरें खिंचवाता है...

सूरज ढलते ढलते आसमान में कितने हसीन रंग बिखेर जाता है...

Saturday, August 21, 2010

guest appearance...

कभी कभी सावन के महीने में बड़ी हैरानी की बात होती है...
शाम को आसमान साफ़ निकलता है और एक ताज़ा नीला रंग उभर आता है जैसे अभी अभी बनाया हो...
सूरज के सुरमई लाल रंग में बादल कुछ 'abstract painting' की तरह नज़र आते है...
सूरज डूबते डूबते एक 'night lamp' की तरह नज़र आता है...
ऊँचे ऊँचे पेड़ खामोश खड़े रहते है इस इंतज़ार में के कब सूरज डूबेगा और नींद आएगी...
ऐसा लगता है के जैसे आसमान के परदे पे मौसमों की फिल्म चल रही है....
और ठण्ड ने जैसे 'guest appearance' किया हो....

गुलज़ार....

देखते ही आपको सादगी का एहसास होता है...
सफ़ेद रंग जो यह आप सजा के चलते हो...
लगता है जैसे सब बिलकुल पाक है...
कोई नज़्म आपकी ग़म के कंधे पे हात रखके सहारा देती है...
जब दिल तनहा हो.. तो कोई शेर आपका महफ़िल सजा देता है...
आपकी लिखी हुई बातें आशिकों का प्यार में हात बटाती है...
भोले भाले सीधे साधे लफ़्ज़ों को बहला फुसला कर कागज़ पर हमेशा के लिए कैद कर देते हो...
जज्बातों को कुछ इस कदर बयान करते हो के जिंदगी बार बार आपको छूके कहती है मुझे भी अपने अन्दर समा लो...
आपकी हर नज़्म से एक सौन्धी सी खुशबू आती है.. जैसे पुरानी किताबों में आती थी...
जिंदगी की हर टूटती शय को आपकी नज्मे जोडती है और हर उभरती शय को जैसे आसमान तक पहुचाती है..
जादूगर लगते हो मुझे....

जिंदगी के कई एहसासों को खूबसूरती से निहार कर जैसे मुर्दा कागज़ में जान फूंकते हो...

Friday, August 20, 2010

मोतिया....

न जाने कितने आँखों के डॉक्टरों को बताया...
पर यह मोतिया बिन्द निकलता ही नहीं...
ऑपरेशन से भी कुछ नहीं होगा यही उनका कहना था...
जब आईने में देखता हूँ तो यूँ लगता है जैसे कोई सफ़ेद धुंदली परछाई घूर के देख रही है...

तेरी सूरत का मोतिया बिन्द आँखों पे छप गया है....

Monday, August 9, 2010

त्रिवेणी...

ऋषियों, सन्यासियों की तरह... 'बुद्धं शरणम गच्छामि' का धीरे धीरे जाप करते हुए वोह बैठे रहते है चरों पहर...
और जब कोई तप भंग करता है तो श्राप देते है जैसे कहीं बिजली गिरी हो...

हवाई जहाज़ जब बादलों के बिच से गुज़रता है तो कितना हिलने लगता है!!!!!....