Sunday, July 15, 2012

बौछार....

बोहोत देर बरसने के बाद जब बरसात थम जाती है...
तब मै अपने आँगन में लगे उस पेड़ से मिलने चला आता हूँ...
जो तुमने अपने हाथ से आँगन में लगाया था...
तेज़ हवा चलती है आँगन में, मानो धरती को सुखा रही हो...
अपने पत्तो और शाखों से पानी झटक कर...
मेरे चेहरे पर पानी की बूँदें फ़ेंकता है वोह पेड़...
 जैसे कोई परिंदा अपने परों से पानी निकालता है...
उस पल तुम्हारे होने का एहसास होता है...
जब तुम नहा कर निकलती थी और अपने बाल सुखाती थी...
तुम्हारे बालो से निकली कुछ महकती बूँदें मेरे चेहरे पे बरसती थी...
दरख्तों ने ये अदा तुमसे ही सीखी है..
पूरे कायनात की खूबसूरती समा गयी है तुम्हारे अन्दर...