Tuesday, August 2, 2011

मुस्कुराहट....

मेरी  सोसाइटी  के  'basement' में  एक  छोटा  सा  परिवार  काम  करता  है...
मिया  बीवी  है  और  एक  बच्चा  जो  कभी  काम  में  हात  बटाता  तो  कभी  बोझ  लगता  है...
लोगो  के  कपड़ों  पर  जो  दौलत  और  शोहोरत  का  मैल  जम  जाता  है...
उसको  साफ़  करके  फिर  मैल चढाने  के  काबिल  बनाता  था  वोह  परिवार...
न  'career' की  महत्वकांक्षा  थी  न  इज्जत  का  खोकला  गुरुर...
पर  जब  भी  मिलते  थे  मुस्कुराते  थे  जैसे  खुदा  मुस्कुराता  है  बन्दों  पे...
दिन  भर  काम  करने  के  बाद,  बीवी  शाम  को  हर  घर  के  हिस्से  के  कपडे  देने  जाती  है...
जैसे  लोग  कोई  बड़े  हवन  पूजा  के  बाद  प्रशाद  बाटते  है...
सारे  बच्चे  किसी  सस्ते  खिलोने  की  तरह  देखते  थे  उस  बच्चे  की  तरफ...
पर  फिर  भी  घुल  मिल  के  खेलता  था  सब  के  बिच...
अभी  तक  उसने  औकाद  के  हिसाब  से  दोस्त  बनाना  सीखा  नहीं  था...
हर  रोज़  रात  को  घरों  से  बचा  हुआ  खाना  लेके  घर  को  लौटते  थे...
और  लौटते  हुए  अक्सर  मैंने  तीनो  को  एकसाथ  मुस्कुराते  हुए  देखा  है..
इस   उम्मीद   में  के  किसी  दिन  जिंदगी  हसीन  होगी 
जहां  बाकी  घरों  में  काम  के  बोझ  और  खोकले  रिश्ते  सांस  लेते  है...
कम  दीखते  है  ऐसे  लोग  जिनके  हालात  मजबूर  न  होके  खुद्दार  है...
दौलत  से  कमजोर  पर  मुस्कुराहट  और  उम्मीद  से  मजबूत..
जिंदगी  इतनी  भी  मुश्किल  नहीं  मुस्कुराने  को..
रूह  इतनी  भी  कम्जोर  नहीं  मर  जाने  को..

Monday, August 1, 2011

बारिश...

सुबह से एक काला बादल मेरा पीछा कर रहा था...
पीछा करते करते मेरे घर की खिड़की पे आके रुक गया...
किसी कुत्ते के पिल्ले की तरह जो अपनी माँ से बिछड़ गया हो...
न जाने क्या आरज़ू थी उसकी बड़ी आस लगा के ताकता रहा मुझको...
फिर एक हवा का झोंका आके मेरे कानो में चुपके से कह गया...
सावन का भटका बादल है उसे अपनी मंजिल तक पहुंचा दो...
फिर जब हवाओं पे पैर रखकर शाम उतरी...
तो मेरी हैरत की निगाह जो उस बादल पर थी मददगार हो उठी...
हवाओं के हाथों संदेसा भिजवाया उस बादल को...
की मेरे पीछे पीछे चलता रहे...
फिर जब चाँद निकला गोधुली में...
तो उस बादल को तेरे घर के ऊपर छोड़ आया था....
हर बादल की ख्वाहिश रहती थी तेरी छत पे बरसने की...
सुना है कल रात बारिश हुई थी सिर्फ तेरे ही घर पर जब तुम मुस्कुराती आँगन में आई थी...
खुदा का कोई करिश्मा समज कर लोगो ने शाम की नमाज़ तेरे दर पे ही अदा करदी...
बारिश भी दीवानी है तेरी...
बादलों का कम्बल ओढ़े किसी डाकू की तरह तुझे मुस्कुराता देखने चली आती है सावन में...


सावन...

कल रात के आखरी पहर में  दरवाज़े पे हुई दस्तक ने अचानक जगा दिया...
हवा का झोंका था जो दरवाज़े पे कुछ सब्ज़ पानी की बूँदें फ़ेंक गया था..

सुबह उठ के 'calendar' देखा तो सावन का महिना शुरू हो चूका था.... 

India Pakistan

अगर  इंडिया  और  पकिस्तान  आज  एक  होते..
तो  सचिन  तेंदुलकर  और  वसीम  अकरम  एक  ही  टीम  में  होते..
क्या  टीम  होती  वह  हर  विश्वकप  हम  ही  जीतते...
कश्मीर  की  पेशानी  पे  इतनी  चोटे  नहीं  होती...
हिन्दू  और  मुसलमानों  के  बदन  से  कॉमि  बदबू  नहीं  आती...
उर्दू  आज  भी  स्कूलों  में  पढाई  जाती...
'Bangalore' के  साथ  साथ  इस्लामाबाद  भी  'IT' में  आगे  होता..
न  टूटती  बाबरी  न  गोधरा  में  दंगा  भड़कता...
आतंकवादियों  से  ज्यादा  समाजवादी  होते...
लाहोर  की  शामे  और  भी  सुरमई  होती...
और  काम  के  सिलसिले  में  लोगों  का  कराची  आना  जाना  होता...
मेहदी  हसन  और  नुसरत  साब  की  आवाजें  हर  घर  में  गूंजती ...
पर  वक़्त  का  फरमान  कुछ  और  था...
और  फसल जो पहले  एक ही  खेत से  कटती  थी  अब  अलग अलग बाज़ारों में बेचीं जाती  है...
'Nuclear family' की  हवा  ने  देशों  को  भी  नहीं  छोड़ा...
जो  रोटी  पहले  एक  ही  चूल्हे   पर  पकती  थी , वो  अब  अलग  अलग  कमरों  में  बंद  दरवाज़ों  के  भीतर  बनती  है...
इश्वर-ओ-अल्लाह  भी  क्या  करते , के  खुदा  के  इस  बनाये  हुए  जहां  में  कुछ  लोग  खुद  खुदा  बन  गए  थे...
मैंने  बटवारे  को  देखा  नहीं  है  पर  आज  भी  सरहद  पर  उन  रूहों  की  चीख  सुनाई  देती  है.. 
जिनके  जिस्म  काटे  गए , इज्जत   लूटी  गयी , और  जिनको  बिछड़ने   पे  मजबूर  किया गया...
आज  भी  पंजाब   में  सड़ी  गली  लाशों  के  निशाँ  दिखाई  देते  है  जिनको  सड़क   पर  से  कुरेद  कर  निकाला  गया..
काश  आज  ये  दोनों  देश  एक  होते...
तो  इन  रूहों  को  चैन  मिलता..
अमन  की  सिर्फ  आशा  ही  नहीं  अमन  की  खुशबू  से  हर  कोना  महकता... 

बाज़ी....

ऐ  खुदा  चल  किसी  दिन  साहिल  पे  बैठ  के  ज़िन्दगी  की  बाज़ी  लगाये .. 
शतरंज  की  बिसात  पर  फैसला  करें  की  कोंन  ले  जाएगा  ज़िन्दगी  को... 
तू  अपनी  मर्ज़ी  से  मुश्किलें  बीछा  मेरी  राह  में...
मै  अपने  यकीन  से  उनको  पार  कर  लूँगा...
मेरे  वजूद  को  मिटाने  की  कोशिश  तू  जारी  रख...
मै  हर  एक  दिन  नया  जनम  लेके  फिर  आ  जाऊंगा ...
मेरे  हर  रिश्ते  को  बाज़ार  में  नीलाम  करदे...
मै  हर  एक  मोड़  पे  रिश्तों  को  महफूज़  कर  के  आगे  बढ़  जाऊंगा...
मेरे  सफ़र  के  हर  मोड़  पे  दो  राहें  पेश  कर...
मै  हर  बार  तजुर्बे  से  सही  राह  चुन  लूँगा...
दहकती  आग  लाके  रखदे, बर्फीली  हवाएं  चलवा...
जीने  की  तमन्ना  से  मै  हर  वार  को  सह  लूँगा...
और  जब  तू  आखरी  चाल  चलेगा  मौत  की...
तो  उसकी  तस्वीर  दिखा  कर  मौत  से  भी  बच  निकलूंगा...
यूँ  भी  होगा  इक  दिन...
और  फिर  ज़िन्दगी  मेरा  हात  थामकर  मुझसे  कहेगी  मुस्कुराकर...
चलो उठो  अभी  तो  बोहोत  सफ़र  बाकी  है...
यूँ  भी  होगा  इक  दिन.. ज़िन्दगी  फिर  चल  पड़ेगी...