Sunday, January 30, 2011

मुंबई...

कहीं धारावी की छोटी गलियों में एक पूरी दुनिया बस्ती है...
तो कहीं कार्टर रोड की जोग्गिंग ट्रैक पर समंदर की हवा भी मेहेंगी है...
कहीं जोगेश्वरी की चाल में टेस्ट मैच चलती है...
तो कहीं वानखेड़े के 'flood lights' जैसे समंदर पे सजदा करते है...
मीरा रोड की दुनिया जैसे अभी अभी बसी है...
तो 'brabourne' पे आज भी पुरानी कसी मैच का भूत रात में घूमता है...
हर रोज़ एक नयी जगह पे जाके यह शेहेर फैलता है...
तो v.t स्टेशन जैसे अपने भुडापे पे अटल खडा है....
कुछ इलाकों में आज भी इश्क इज़हार से शर्माता है यहाँ...
ओर 'band stand' पे इश्क जिस्मानी तौर पे पानी की तरह फैला है...
मोहम्मद अली रोड पे हर दिन जैसे ईद सा लगता है...
तो झवेरी बाज़ार में रोज़ करोड़ों के सौदे चलते है....
'stock exchange' पे सारे लोग खुले आम सट्टा खेलते है...
तो मुंबई underworld जैसे चूहों की तरह रात में चुपके से काम करता है...
मुंबई के बारे जितना लिखू उतना कम है...
कितने शेहेर बसते है इस एक शेहेर में....
सुबह धमकती है रात में चमकती है....
लोग कहते है के सिद्धि विनायक ने मुंबई को बचा के रक्खा है...
कोई कहता है जब तक हाजी अली डूबता नहीं मुंबई को कुछ नहीं होता...
पर मुंबई पे असली बादशाहत है उसके लोगों की...
जो डरते है के कहीं मुंबई थम न जाए...
थम गए तो जैसे यह शेहेर बिखर जाएगा...
इसलिए सदा चलते रहते है...
रफ़्तार ही मुंबई का असली मालिक है...
खुदा को भी पोहोचने में देर लगती है यहाँ.....



Saturday, January 29, 2011

पूरे चाँद की रात...

अक्सर मैंने शाम को देखा है जब पूरे चाँद की रात आने को होती है...
जब उतरती है बादलों की सीडी से...
तो बड़ी ही खुशनुमा नज़र आती है...
जैसे अभी अभी नहा के निकली हो...
और चेहेरे पर एक सौंधी सी मुस्कान लिए घुमती है...
चारो ओर चाँद के आने की ख़ुशी बांटती है...
जैसे कोई दुलहन खुश होती है जब उसका पति जंग से लौटता है...
सितारों को थाली में समेट के साहिल पे खड़ी रहती है...
जब रात आये तो उसके बदन पे सितारों को रखकर कर मुस्कुराके देखती है...
जैसे कोई भगवान् पर फूल चढ़ाये...
ओर सूरज की नज़र न लगे इसलिए रात के माथे पे चाँद का टिका लगाकर...
रात की बाहों में यूँ समा जाती है जैसे दो रंग आपस में मिल जाते है..
और बस एक ही रंग दिखाई देता है...





नया साल...

हर बार की तरह इस बार भी जनवरी में वक़्त एक साल आगे बढ़ा है..
सारी दुनिया ने नए साल का स्वागत किया है जैसे किसी नयी दुल्हन का करते हो...
अपना अपना तरीका है सब का नया साल मानाने के लिए...
पास के झोपड़ियों ने भूका रह कर नए साल में कदम रक्खा है..
कुछ बच्चों ने बचा हुआ सडा खाना खा कर पार्टी की है...
कुछ लोगों ने किसी का रेप कर अपनी ख़ुशी मनाई है...
कुछ क़त्ल हुए नए साल पर...
कई नौजवान इस रात भी नौकरी का सिर्फ तसव्वुर करके नाच रहे है...
और शराब कि महफ़िल सजी है बड़े मकानों में..
खोक्लापन, झूट, मतलबीपन, इन सब को चकने में खा रहे है...

मुझे इंतज़ार है उस साल का जब सच में कुछ नया हो..
और न ही सिर्फ तारीख किसी अपाहिज की तरह आगे खिसके...


आम आदमी....

सूरज भी एक आम आदमी की तरह जीता है हर रोज़...
सुबह जब उगता है तो जैसे योग कर रहा हो...
फिर दस बजे तक पूरा उग कर जैसे तैयार होके दफ्तर निकल रहा हो...
दोपहर जैसे चुप चाप किरणों के साथ खाना खा लेता है..
जब धीरे धीरे शाम नजदीक हो तो..
बादालों के साथ चाय पिता है और गप्पे लड़ता है....
और जब शाम बादलों से उतर कर आये...
तो दफ्तर समेट कर एक फूल हाथ में लिए उसको मिलने जाता है...
और शाम की बाहों में कुछ सब्ज़ लम्हे समेटता है...
और जब अँधेरा पीछे से आके दस्तक दे..
तो शाम को साहिल पे छोड़ के अपने घर निकल जाता है..
और घर वालों से मिलके चैन की नींद सो जाता है...
ऐसे करोड़ों सूरज रोज़ इसी तरह जीते है और भुज जाते है...
इंतज़ार है उस सुबह का जब सारे सूरज एक साथ उगे हो...


किश्त...

कभी कभी शाम को मिलती हो आसमां पे बिखरे रंग की तरह...
कभी सुबह नज़र आती हो कोहरे में छुपे सूरज की तरह...
कभी रात को मिलती हो सुनसान सन्नाटे की तरह...
देखती हो मेरी तरफ घूम कर तो वक़्त हैरान सा लगता है...
सुबह जब चुप चाप बैठती हो तो लगता है जैसे कोई परिंदा पर फैला के आसमां पे उड़ रहा है..
मेरे लतीफे पे ताली देती हो तो जैसे आबशार कोई पत्थर पे टूटे..
हंसती हो तो चुटकी में मौसम बदल जाता है, वोह जैसा सावन में बदलता है...
मिलता हूँ तुमसे तो जिंदगी आगे चलती है...
मेरी बातें सुनकर आँखों ही आँखों में न जाने क्या बुनने लगती हो..
जब जाती हो तो चुप के से जिंदगी एक पुडिया में बाँध कर मेरी जेब में रख जाती हो..
फिर ख्वाब में आकर उसको खोल के मुस्कुराती हो...
और जैसे जिंदगी का हर एक टुकड़ा अपनी सही जगह पे आके रुक जाता है...
और एक हसीन जिंदगी की तस्वीर नज़र आती है..
जैसे कोई 'collage' बनाये...
एहसान है तुम्हारा मुझपे...
रोज़ मिला करो जानम... के किश्तों पे तुम्हारा एहसान चूका पाऊँ....



Saturday, January 1, 2011

ग़ज़ल....

ऐसा लगता है अभी तो आया हूँ तुझ से मिलकर...
फिर तन्हाई ने यकीन दिलाया के कितना अरसा गुज़ारा है तुझ से मिल कर..

अफ़सोस ये नहीं के अब साथ है तो बस यादें..
अफ़सोस इस बात का है के देखा नहीं तुमने पलटकर...

तुझ से सजा हर पल आज भी ज़हन में ताज़ा है...
कई रोज़ यूँ ही कट जाते है उनको सोच कर...

मैंने एक नज़्म तुम्हारे लिए बचा के रक्खी थी..
आज मर गयी वोह आ रहा हूँ उसको दफना कर..

तेरे आने के दिन नजदीक है 'पराशर'...
खुश है सबा, अब तेरे घर से गुजरकर...