Friday, May 21, 2010

मै और काली रात...

मै और काली रात अक्सर बातें करते है...
तन्हाई को गले लगा के ज़िन्दगी के कुछ पल साथ बिताते है...

रात की खामोशी की धुन को पकड़कर
जिंदगी की गझल लिखते है..

कहीं दूर एक छोटीसी रोशनी को देखकर...
खोये हुए प्यार की याद दिलाते है...

मै उसे अपनी जिंदगी के कुछ पल बांटता हूँ..
और रात अपनी चाँद की रोशनी बखेडके मुझसे बात करती है...

'काश' इस लफ्झ को पहलु में लाकर
माझी के कुछ पलों को बदलने की कोशिश करते है...

फिर कुछ देर रूबरू होने के बाद.. हम जुदा हो जाते है...
नींद तो आती नहीं... बस सुबह की क़यामत का इंतज़ार करते है...

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