Thursday, March 11, 2010

corporate....

कॉर्पोरेट लाइफ भी बड़ी बदनसीब है...

यहाँ 'customer' से ज्यादा ज़रूरी है 'contacts'....
यहाँ 'common sense' से ज्यादा ज़रूरी है 'dressing sense'...
यहाँ 'self-confidence' से ज्यादा जरूरी है 'self-image'...
यहाँ 'working' से ज्यादा जरूरी है 'networking'...
यहाँ 'ability' से ज्यादा जरूरी है 'flexibility'...

कॉर्पोरेट शब्द कहते हुए जब होट गोल हो जाते है.. उसी तरह का एक कुआँ सा लगता...
हज़ारों लोग अपने ख्वाब इस कुँए में डालते है पुरे होने के लिए...
पर यह कुआँ भी है फर्जी.....
किसी आम कुँए में पत्थर डालो तो उसके गिरने की आवाज़ ऊपर तक सुनाई देती है...
यहाँ तो बस चीज़ें गुम हो जाती है... और आवाज़ तक नहीं होती....

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