Monday, March 29, 2010

शाम........

कई बार साहिल पे मुझे शाम मिलती है...
सूरज ऐसे उतरता है साहिल पे जैसे अभी अभी लोकल ट्रेन से उतरा हो...
और चाँद ऐसे निकलता है जैसे किसी 'factory' की 'shift' बदली हो...
पंछी ऐसे उड़ते है जैसे निकले हो 'shopping' पे..
साहिल पर पड़े बड़े बड़े पत्थर घूरते है समंदर को जैसे किसी फिल्म की शूटिंग चल रही हो...
मद्धम से हवा के झोंके चलते है जैसे कहीं दूर कोई ग़ज़ल सुनाई दे...
और डूबते डूबते सूरज, उस दोस्त की तरह जो रोज़ मिलता है...
मुझसे कहता है "मै कल फिर आऊंगा"
और मै उसे अलविदा कहके रात को गले लगाता हूँ...
जैसे सालों बाद कोई स्कूल का दोस्त मिलता है...

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