Wednesday, March 3, 2010

"खटमल"

और फिर यूँ हुआ... रात एक खटमल ने जगा दिया...
फिर यूँ हुआ... खटमलों की वोह दरी खुल गयी...
और यूँ हुआ... खुजली की वोह लड़ी खुल गयी...
जागती रही नींद मेरी जागते रहे 'tubelight' की रौशनी के तले...
फिर नहीं सो सके इक सदी के लिए हम दिलजले....

और फिर यूँ हुआ... खटमलों के झुण्ड ने उड़ा दिया...
फिर यूँ हुआ... नींद के नक्श सब धुल गए...
और यूँ हुआ.... गददे थे खटमलों में रुल गए...
चादर को ओढ़े हुए जागते रहे खुजलाते हुए... खटमलों से घिरे....
फिर नहीं सो सके इक सदी के लिए हम दिलजले....

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