मुझ में जो शायर है.....
Wednesday, March 3, 2010
त्रिवेणी
रोज़ सुबह खुद से यह वादा करता हूँ की आज कुछ लिखूंगा.....
सुबह की धुप सरकते सरकते शाम की तरफ बढती जाती है पर कागज़ पर कुछ भी सरकता नहीं......
तेरे हुस्न को लफ़्ज़ों में बांधना कितना मुश्किल है.......
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