रात के दुसरे पहर में मेरी आँख अचानक खुल गयी
खिड़की के बाहर देखा तो बरसात हो रही थी
बूंदे हवाओं से मोहब्बत कर रही थी
बद-ए-सबा में एक अजीब सी ख़ामोशी थी
फिर उस लम्हे की याद मेरे दिल में ताज़ा हो गयी
जब तुम बारिश होने पर अपने घर के आँगन में आती थी
और अपना हाथ बाहर निकल कर खड़ी रहती थी
बूंदे तुम्हारे हाथ से छु के दिवानो की तरह ज़मीन में मिल जाती थी
कितनी खूबसूरत लगती थी तुम
फिर कुछ उसी लम्हे को दोहराने के लिए
मैंने अपना हाथ खिड़की के बाहर निकाला
देखा तो बरसात बंद हो चुकी थी
शायद तुमने बरसात होने पर अपने आँगन में आना बंद कर दिया है
फिर बरसात हुई मेरी आँखों से और एक बूढी माँ की तरह रात ने मुझे अपनी आघोष में ले लिया.....
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