मिले थे हम अजनबी की तरह
पर न जाने क्यों तुझ में एक कशिश थी
होश खो बैठा मै रिन्दों की तरह
जिंदगी के माइने बदल डाले तुने मेरे
मैंने कई ख्वाब सजाये किसी बच्चे की तरह
पर आज उन ख्वाबो में बची है तो बस
एक तस्वीर तुम्हारी और जजबात मेरे
एक कश्ती अकेली समंदर में जिस तरह
फिर भी तुमने दिए मुझे जिंदगी के सबसे हसीन तीन दिन
उन को पाकर मै था किसी व्यापारी जैसा जो बाँट रहा था अपनी दौलत पागलों की तरह
हर तरफ़ मै फ़ेंक रहा था जजबात
इस शौक में के कभी तो तुझसे टकरायेंगे
किसी तेज़ हवा के झोंके की तरह
पर वोह पहुँचते थे तुझ तक और बिखर जाते थे मिटटी के ढेर की तरह
शायद मुझ में ही कोई बात न थी जो तुझे याद आये
पर हो सके तो कभी उन जज्बातों को महसूस कर्क देखना
आज भी वोह उतने ही बेचेन है किसी के पहले प्यार की तरह......
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