Sunday, September 27, 2009

वक्त का कारोबार चले.........

सर्दियों में अक्सर होता है...........
जब सूरज अपनी आखरी साँस ले रहा हो...
और उसका वोह सुरमई लाल रंग सिर्फ़ "horizon" पे जैसे जम सा गया हो....
हल्का अँधेरा होने लगे पर फिर भी सूरज जैसे एक कोने से सब को देख रहा हो....
और चाँद जैसे अभी अभी नहा के बाहर निकला हो......
जिसको कभी कभी "twilight" कहते है किसी क्रिकेट मैच में.....
तो यूँ लगता है जैसे वक्त वही पर रुक गया हो.......
न सूरज की कोइ आहट महसूस होती है और न चाँद की कोई हरकत...
न पेड़ का कोई पत्ता हिलता है और न जमीं के कोई कतरे को हवा छूती है....
वक्त का कारोबार जैसे ठप्प हो गया हो........
ऐसे आलम में आके तुम जरा मुस्कुरा दो......
के वक्त का कारोबार चले.........

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