Monday, August 12, 2013

कसब

नींद बोहोत बेकरार थी उस रात
सांस में हल्का सा भारीपन था
हर करवट पे जैसे कोई दूर बोहोत दूर जा रहा था
के फिर कभी लौट कर नहीं आएगा
बड़ी मुश्किल से कटी थी रात जैसे कोई बीमार काटता है रात हस्पताल में
सुबह सुबह अख़बार देखा तो पता चला
उसे फांसी दे दी  गई कल शब्
जिस्म मर गया
अजीब है ये इंसानों के जिस्म को फांसी देना
क्या सोच को फांसी दे पायेंगे?


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