Tuesday, October 6, 2009

दुनिया वही खड़ी थी........

कहीं पर "बुश" की बातें हो रही थी
कहीं पर नक्सलवादी अपना केहेर बरसा रहे थे.....
पर वही चाँद हमे देख रहा था...
फिर में उसी बिस्तर पर जाके सो गया था......
सुबह उठ कर उसी सूरज की किरने मेरे साथ आँख मिचोली खेल रही थी......

सब लोग चल रहे थे..... दुनिया वहीँ खड़ी थी..........

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