उसी जगह पर रोज़ चला आता हूँ मैं
जहाँ पर पुरी शब् इंतज़ार किया था मैंने तुम्हारा
तुमने कहा था मैं किसी और की हो चुकी हूँ
और उस शक्स को तुम्हारे वाडे अच्छे नही लगते
तुम्हे भी अच्छे नही लगते; तुमने यह तो नही कहा था
टुटा मेरा ख्वाब ले गया उडा के उसको कोई मौसम का झोंका
इसीलिए हर शब् तुम्हारा आज भी इंतज़ार करता हूँ
की कोई इमानदार मौसम आएगा मेरा ख्वाब दे जाएगा
मुझे यकीं था एक दिन तुम जरूर आओगी
फिर मौसम बदला, लम्हे गुज़रे
दिन रात का तो पता नही था पर, हाँ वक्त को जरुर जाते देखा था
सावन के बादलों पर देखता था तेरे आने के संदेसे
बारिश के पानी में देखता था तुम्हारे चेहरे
सर्दियों में रात में तुमने दिए हुए कम्बल को ओढ़ कर वही सो जाता था
ऐसे ही कुछ साल बीते, कुछ दिनों बाद उसी जगह पर एक बूढा शक्स जिंदगी जी यादें लिए बैठा नज़र आया
बाल बढे हुए, दाढ़ी जैसे छुपाये हजारों वादों के अधूरे लम्हे
एक आवाज़ से वो कुछ अपने ख्वाबों से बाहर आया, एक और ख्वाब से मिलने
मुझे मालूम था तुम जरूर आओगी
शायद बूढा होने पे मैं कुछ ऐसा ही लगूंगा............
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