Saturday, August 22, 2009

दबे पाँव............

सावन का महिना जब जवां होता है
तो शाम होते ही आसमान पर सुन्हेरे रंग खिल जाते है
चाँद कुछ और शबनमी नज़र आता है
हवा में इक अजीब सी खामोशी सुनाई देती है
सुबह का आलम तो यूँ लगता है जैसे सूरज की किरने पानी से धुल कर निकली हो
आसमान पर एक हलकी सी धुंद सी जम जाती है जो हर दिन थोडी थोडी बढती रहती है जैसे कोई चूल्हे में हवा फूँके,
मैं सावन की तारीफ़ नही कर रहा हूँ
ठण्ड का मौसम दबे पाँव किसी चोर की तरह आता है और धीरे धीरे धरती को अपनी आघोष में लेता है
कुछ उसी तरह जैसे तुम दबे पाँव आकर मौसम को बदलती हो...............

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