किसी आलिशान से जगमगाते "mall" के बंद किसी दुकान के दरवाज़े के निचे वो घंटो यूँ ही बैठी रही
उसके पास एक पुरानी सी बोतल में में पुराना सा पानी था
सामने उसके मंज़र था खाने का, पिने का, मस्ती का,
कमाल की लड़की थी वो, आँख में उसके आंसू भी थे और होटो पर एक मद्धम सी मुस्कान भी
अपनी किस्मत पे वोह आंसू बहा रही थी और सामने वाले मंज़र पर हस रही थी
भूक की लौ उसकी आँखों में जल जल कर पिघल रही थी
वो अन्दर ही अन्दर चीख रही थी
आस पास के लोग उसको देखकर और मज़े से खा रहे थे
किसी की भी नज़र तो छोड़ो आँखे भी नही गई उस पर
उसे भूक तो बोहोत लगी थी, उसके साथी लोगो से मांग कर अपनी भूक मिटा रहे थे
पर उसकी खुद्दारी तो देखो वो भिक भी न मांग सकी
अकेली पड़ गई थी बोहोत, उसकी बोतल सिर्फ़ वफ़ा निभा रही थी किसी पागल के कुत्ते की तरह
आज उसने फिर एक रात पानी पि कर ही गुजारी थी...............
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