कभी कभी यूँ ही सोचते सोचते तुम्हे कितने सवाल याद आते हैं
जिनका जवाब तुम खामोशी से कितनी ज़ोर से देती हो
रिश्ते, अल्फाज़, यादें, ख्वाब, और न जाने कितने हतियार है तुम्हारे पास
सबको लेकर चलती हो तो ऐसा लगता है के नई दुनिया बना रही हो
बादल जैसे चलते है आसमान की चादर पर
कलम को हाथ में उठाकर तुम कुछ उसी तरह लिखती हो ..................
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