Friday, August 28, 2009

"canteen"

किसी दिन कॉलेज शुरू होने से पहले जब हवा में एक अजीब सी खामोशी होती है
तब तुम कैंटीन में आना जब लोगो से ज्यादा खाली टेबल हो
हाथ हिलाकर मुस्कुराना और बिना बताये मेरी टेबल पर एक बोहोत ही गरम चाय के प्याले के साथ आकर बैठ जाना
आकर यूँ बात करना जैसे कोई कहानी सुना रही हो
तब में अपने जिस्म से बाहर आकर अपनी रूह से तुम्हे देखना चाहता हूँ
तुम्हे चारों तरफ़ से देखना चाहता हूँ जैसे कोई किसी खुबसूरत चीज़ को पहली बार देखे
तुम्हारी जुल्फ से खेलना चाहता हूँ
तुम जब मुस्कुराती हो तो उस आवाज़ को मैं हमेशा के लिए कैद करना चाहता हूँ जैसे कोई तितली के पर किताबों में रखे
तुम बात कर रही हो और मैं सुन रहा हूँ यह मंज़र मैं कुछ यूँ देखना चाहता हूँ जैसे कोई ग़ज़ल को पढ़ के मुस्कुराए
उस बोहोत ज्यादा गरम चाय को तुम जब ठंडा कर रही हो तो इस ग्लास से उस ग्लास तक जैसे कहानी के किरदारों की शक्लें बना रही हो
उस गरम चाय की भाप जब तुम्हारे चेहरे पर से गुजरेगी तो ऐसे लगेगा जैसे चाँद पर बादल चल रहे हो
थोडी देर के बाद जब कहानी ख़तम हो जायेगी और मैं कुछ होश में आऊंगा और तुम्हारे सामने हैरान सा नज़र आऊंगा
आस पास का शोर कुछ बढ़ गया होगा लोगों की आबादी भी बढ़ गई होगी
पर मेरी रूह वही खड़ी थी
किसी दिन आकर फिर से कोई कहानी सुनाओ तुम
के रूह में जान आ जाए!!!!

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