Saturday, January 28, 2012

तेरी दो आँखें...

बोहोत ही फरीद है तेरी दो आँखें...
हर बार मिलती है तो एक सवाल पूछती है...
जैसे हर गुनाह का सबब पूछती हों...
तेरी रूह इन आँखों में उतर आई है...
मैंने कई बार इनको चीखते सुना है...
न जाने क्या दर्द है, यूँ लगता है बस अब रो दोगी..
कुछ छुपे हुए राज़ है हर इंसान के बारे में..
जब भी देखती हो तो खामोशी से कान में कह जाती है...
ढलते सूरज को देखती हो तो जैसे दोनों आँखें ध्यान लगाए बैठी हो...
और चाँद जब आये आसमान पे तो किसी दोस्त की तरह बस  पलके झपकाती है...
बड़ी ही दिलचस्प है तेरी आँखें...
खूबसूरत है दो आँखें.. फिर रोज़ इन आँखों से जी भर के देखो तो मुझको...

No comments:

Post a Comment