अजीब बेचैनी महसूस होती है...
जब किसी ऑटो में जाता हूँ.. और जेब में बस एक ५०० का नोट है...
पैसा होके भी गरीब होने का एहसास होता है...
ज़िन्दगी रुक जाती है और तभी चलेगी जब छुट्टा मिलेगा...
फिर दर दर भटकता हूँ छुट्टे की उम्मीद की लौ हाथ में लिए...
जैसे कोई भिकारी घूमता है सिग्नल पे...
दुनिया का असली चेहरा तब सामने आता है....
फिर कही से कोई बन्दा आ के छुट्टा देता है...
जैसे मानो खुदा का करिश्मा है...
एक ५०० का नोट खुदा के होने का एहसास दिलाता है...
और हमने बेवजह पैसे को खुदा मान रखा है....
No comments:
Post a Comment