Saturday, January 28, 2012

नासूर...

कुछ रिश्ते वक़्त की राह पे चलते चलते नासूर बन जाते है...
बिन माँ बाप के बच्चों की तरह पेश आते है...
चीखते है, चिल्लाते है, आदम खोर बन जाते है....
कुछ दिन तो शांत रहता ऐसा रिश्ता जिस्म में...
पर कुछ रोज़ बाद जिस्म के बाहर बदन पे फोड़ा बन के बाहर आता है..
उस 'allergy' की तरह जो बार बार आती है...
बोहोत कोशिश करने के बाद काबू में आते है...
किसी बिगड़े हुए हाथी की तरह...
तेरे रिश्ते को मैंने ज़हन के एक कोने में...
ज़ब्त की जंजीरों में बाँध के रखा है...
जैसे किसी पागल को बाँध के रखते है....
और तेरा जमाल भी कमाल है...
हर रोज़ वोह रिश्ता साबित करने की कोशिश करता है के मै पागल नहीं हूँ...
और रोज़ उसे में एक 'injection' देके सुला देता हूँ...

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