Sunday, January 22, 2012

ग़ज़ल...

जजबात की रीया शक्ल लगा के घुमते है लोग...
रिश्ते नहीं बस कुछ देर साथ निभाते है लोग...

हर बात छुपा ली है सबने अपने बारे में...
सिर्फ अपने ही अन्दर जीते मरते है लोग...

खुद ही समझा रखा है ज़हन को दुनिया के बारे में...
रूह को जंजीरों में बाँध के रखते है लोग...
 
इश्क तो तेरा अल्लाह पाक सा था 'पराशर'...
कमबख्त इश्क के नाम पे जी बहला लेते है लोग...





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