Saturday, August 28, 2010

एहसास....

अक्सर रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में एहसास मुझे किसी साए की तरह छु जाते है...
और सेहेमे से यूँ सिने से लिपटे रहते है जैसे कोई घबराया सा बच्चा अपनी माँ के सिने से लिपटे...
मै उनको जरा धीरज दूँ इतने में दिमाग में बस जाते है...
और कहते है की हमें किसी महफूज़ कागज़ पे उतार दो...
हर एहसास अपने साथ कई कडवे मीठे जजबात ले आता है...
और जिद पे अड़ जाता है के इन्हें महसूस करो...
और कुछ दिन मेरे जिस्म में तैरते रहते है जब तक के उनका जी नहीं भरता...
मेरे जिस्म पे घिनोने दाग और मेरी रूह पे अपनी एक छाप छोड़ जाते है...
जैसे मेरे जिस्म को 'hijack' कर लिया हो...
कितनी मर्तबा कोशिश की इन्हें समझाऊं के तुम्हारा कोई वजूद नहीं...
मुझ पे हस के कहते है के जब तक हमको तुम मुक्त न करो तब तक तुम भी इस जाल में फसे रहोगे...
इन एहसासों से शापित हूँ मै....
इस श्राप से कब मुझे मुक्ति मिलेगी?

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