कभी कभी यूँ भी हो के जिस्म से निकल कर भी में तुझे देख पाऊँ
अभी तक अपने अन्दर ही देखा है तुझे अब के बाहर भी तुझे देख पाऊँ
देख पाता मेरे चेहरे को जब तुम मुस्कुराती हो
महसूस किया है होश खोते हुए मैंने उस वक़्त
देख पाऊँ तुझे अकेले में जब गुनगुनाती हो
और जब फ़ोन पर कहूँ के तुम सबसे हसीन हो
तब तुझे अपने होंट दबाते देख पाता
पर कमबख्त इस जिस्म में कैद हूँ किसी मुजरिम की तरह
जितना निकलने की कोशिश करू उतना ही जकड़ा जाता हूँ
शायद अब मौत के बाद ही तुझमे घुल पाउँगा और मुक्त हो जाऊंगा