क्यूँ बदलती रहती है हर शय मेरे आस पास
क्यूँ है ये रात दिन बदलते किसी call centre के शिफ्ट्स की तरह
क्यूँ रात के बाद फिर रात नहीं आती
क्यूँ ये मौसम, ये रिश्ते, ये जजबात बदलते है
हर चीज़ के दो पहलु है
शोर है तो ख़ामोशी भी है, क्यूँ शोर हर वक़्त नहीं रहता
क्यूँ हर शय किसी दूसरी शय पर आधारित है?
उफ़ कितने सवाल है मेरे आस पास
कभी घेरते है मुझे बच्चो की तरह और मुस्कुराते है
कभी डराते है पिशाचो की तरह
जवाब नहीं किसी के पास इन सब के
क्या जवाब मिल जाने से ये जिंदगी मौत की गर्दिश ख़तम हो जाएगी?
ये भी एक सवाल है
क्यूँ है ये रात दिन बदलते किसी call centre के शिफ्ट्स की तरह
क्यूँ रात के बाद फिर रात नहीं आती
क्यूँ ये मौसम, ये रिश्ते, ये जजबात बदलते है
हर चीज़ के दो पहलु है
शोर है तो ख़ामोशी भी है, क्यूँ शोर हर वक़्त नहीं रहता
क्यूँ हर शय किसी दूसरी शय पर आधारित है?
उफ़ कितने सवाल है मेरे आस पास
कभी घेरते है मुझे बच्चो की तरह और मुस्कुराते है
कभी डराते है पिशाचो की तरह
जवाब नहीं किसी के पास इन सब के
क्या जवाब मिल जाने से ये जिंदगी मौत की गर्दिश ख़तम हो जाएगी?
ये भी एक सवाल है
No comments:
Post a Comment