Monday, August 12, 2013

गर्दिश

क्यूँ बदलती रहती है हर शय मेरे आस पास
क्यूँ है ये रात दिन बदलते किसी call centre के शिफ्ट्स की तरह
क्यूँ रात के बाद फिर रात नहीं आती
क्यूँ ये मौसम, ये रिश्ते, ये जजबात बदलते है
हर चीज़ के दो पहलु है
शोर है  तो ख़ामोशी भी है, क्यूँ शोर हर वक़्त नहीं रहता
क्यूँ हर शय किसी दूसरी शय पर आधारित है?
उफ़ कितने सवाल है मेरे आस पास
कभी  घेरते है मुझे बच्चो की तरह और मुस्कुराते है
कभी डराते है पिशाचो की तरह
जवाब नहीं किसी के पास इन सब के
क्या जवाब मिल जाने से ये जिंदगी  मौत की  गर्दिश ख़तम हो जाएगी?
ये भी एक सवाल है 

कसब

नींद बोहोत बेकरार थी उस रात
सांस में हल्का सा भारीपन था
हर करवट पे जैसे कोई दूर बोहोत दूर जा रहा था
के फिर कभी लौट कर नहीं आएगा
बड़ी मुश्किल से कटी थी रात जैसे कोई बीमार काटता है रात हस्पताल में
सुबह सुबह अख़बार देखा तो पता चला
उसे फांसी दे दी  गई कल शब्
जिस्म मर गया
अजीब है ये इंसानों के जिस्म को फांसी देना
क्या सोच को फांसी दे पायेंगे?


अलविदा

चलो उठो अब एक नए सफ़र पर चलने का दिन आया है
हिसाब चुकता करो सबके, अलविदा केहने का दिन आया है
भर लो अपनी  पोटली  उन चीज़ों से जो काम आएंगी सफ़र में
समेट लो उन पलों को जो रात में तकिये पे याद आयेंगे
बंद करलो उस  रिश्ते को दिल की सीपी में
जो अंजाम तक न जा पाया
करो फिर मिलने के वादे उनसे जिनसे बिछड कर आँखों में आंसू आये
भर लो मुस्कुराहटें जेबों  में उसके रुखसार से
और भर लो आँखें उसके दीदार के तसव्वुर से
बंद करलो उन रिश्तों के खातों को जिनसे
कई दिन तक कोई लेन देन नहीं  था
खामोशिया  ठूस लो जेब में
जिस्म पर मल दो, वोह सपने जो सबने मिलके देखे थे
पोटली लादो पीठ पर  और चलो अब
रिश्ते रोकेंगे तुम्हे बोहोत पर छुड़ाओ हात उनसे और बढ़ो अपनी राह पर
ज़िन्दगी रिश्ते नहीं समझती ज़िन्दगी चलती रहती है, तुम भी चलो अब

Sunday, August 11, 2013

कायनात

एक पल को एक रंग है आसमान पर
पलकें झपकू तो रंग बदल जाता है
अजब सा जादू है ये कायनात का
हर पल आसमान में रंग कुछ और है
हर पल बदलती है कायनात पर फिर भी नहीं बदलती 

Night shift

अब मुसलसल रात ही रात चलेगी
सुबह की धुप अब बस बिस्तर पे मिलेगी
सूरज लोरी गाकर सुलाएगा
और चाँद किसी जिगरी यार की तरह आकर उठाएगा
शाम अब सुबह होगी, सुबह रात होगी
सूरज निकलते ही चुभेगी अब रोशनी आँखों में
चाँद निकलेगा तो चमक आँखों में होगी
अब न कोई दोस्त यार मिलेगा
रात का सन्नाटा अब  यार  होगा और तन्हाई महबूबा होगी
हर रात उजली उजली कटेगी और दिन पे ग्रहण सा छाया होगा
हर वक़्त नींद सी छाई रहेगी आँखों में, हर वक़्त बिन पिए एक hangover रहेगा 
तुझसे मुलाकाते अब बोहोत ही छोटी हो जाएँगी
तुझे अलविदा कहूँगा जब दिन की ओर बढोगी
और में अपनी रात  पर्दों में बंद बिताऊंगा 

मुक्त

कभी कभी यूँ भी  हो के जिस्म से निकल कर भी में तुझे देख पाऊँ 
अभी तक अपने अन्दर ही देखा है तुझे अब के बाहर भी तुझे देख पाऊँ 
देख पाता मेरे चेहरे को जब तुम मुस्कुराती हो 
महसूस किया है होश खोते हुए मैंने उस वक़्त 
देख पाऊँ तुझे  अकेले में जब  गुनगुनाती हो 
और जब फ़ोन पर कहूँ के तुम सबसे हसीन हो 
तब तुझे अपने होंट दबाते देख पाता 
पर कमबख्त इस जिस्म में कैद हूँ किसी मुजरिम की तरह 
जितना निकलने की कोशिश करू  उतना ही जकड़ा जाता हूँ 
शायद अब मौत के बाद ही तुझमे घुल पाउँगा और मुक्त हो जाऊंगा 

खामोश....

कभी कभी यूँ ही खामोश रहने को दिल करता है.…
कोई सवाल पूछे तो बस हँस कर जवाब देने को दिल करता है….
ये नहीं की किसी बात पर खफा हूँ, या दिल दुखा है….
पर जिंदगी की इस सर्दी में खामोशी का कम्बल ओढ़े.…
वक़्त के इस अमर अलाव के पास बैठने को दिल करता है….
जेहेंन के इस मुसलसल शोर से तंग आ चूका हूँ.…
अपने वजूद को भुलाकर इस कायनात को बस देखने को दिल करता है.…
ज़िन्दगी की हकीकत कुछ और है ये जानता हूँ.…
पर  फिर भी ज़िन्दगी के इस झूट को गले लगा कर जीने को दिल करता है…. 

Monday, July 29, 2013

अरमान....

सुबह से एक गिद्ध मेरे घर के आस पास मंडरा रहा था
शायद कोई जानवर मर गया है आस पास…
पर न कोई गन्दी बू फिजा में न ही कौव्वो की कॉव कॉव
बड़ी आस से मेरे घर को देख रहा था, न जाने किस फ़िराक में था
घर में देखा तो कोई चूहा तक मरा नहीं था
कुछ देर बाद एक अजीब सी बदबू फैल गयी थी घर में

मेरा एक अरमान अभी अभी मर गया था
आँगन में उसकी लाश फ़ेंक दी थी मैंने
हाँ शायद उसी को नोच  नोच कर खाने आया होगा वो गिद्ध

Wednesday, May 1, 2013

कैफियत....

अब न कोई माज़ी  है न मुस्तकबिल
न कोई दर्द है न कोई मुदावा
न कोई ख्वाइश है  न ही कोई सपना
रिश्तों के सारे ताने बाने अब सुलझे है
ज़हन और जिस्म अब पराये लगते है 
बस सांस चलती है जिस्म के खाली कमरे में टिक टिक करते हुए
हर पल गुज़रते देख रहा हूँ वक़्त की बिसात पर
बस एक ही है सच्चाई इस पल की
जिसमे पूरा घुल गया हूँ
पूरा ब्रह्माण्ड जैसे एक ही पल का मोहताज है
हर पल बदलती है यह कायनात पर सच्चाई एक ही है
वही है परमात्मा वही है इश्वर वही है मुझमे 
बस एक ही सवाल है जो दिन रात सताता है
कौन हूँ मै?


Sunday, February 3, 2013

उस्ताद अमजद अली खान...

जब सरोद लेकर बैठते हो तो यूँ महसूस होता है
जैसे कोई योगी अपनी साधना कर रहा हो
और जब स्वर निकलता है तो जैसे दूर पहाड़ों पर अज़ान की आवाज़ गूंजे
जब किसी राग को बजाते बजाते आँखें बंद करके ऊपर देखते हो
तो जैसे गहरे ध्यान में जा रहे हो
अनगिनत गूंगे स्वरों को राग की शक्ल दी है तुमने
अनगिनत स्वरों को उनकी मंजिल देके मुक्त किया है
यूँ ही कभी कुछ गुनगुना लिया और कुछ देर बाद उसको एक राग में ढाल दिया
मौसिकी जैसे तुम्हारे अन्दर बसी है  है और सारा ब्रह्माण्ड उससे रोशन है
सरोद की दुनिया के लिए नेमत हो तुम
सरोद के मुहाफ़िज़ हो तुम...
मौसिकी का कोहिनूर हो तुम...

चाँद..


हर रोज़ वोह उसे देखने आता था
जब हर रात वोह छत पे आया करती थी....
और मुस्कुराकर अपनी जुल्फें संवारती थी
जब हलकी सी हवा चलती थी रात के आसमान पर...
आज न जाने क्यूँ वोह नहीं आई
रात भर उसे ढूँढ़ते ढूँढ़ते बहुत दूर चला आया था वोह..

देखो तो आज चाँद ज़मीं के कितने करीब आ गया है.....