Saturday, January 1, 2011

ग़ज़ल....

ऐसा लगता है अभी तो आया हूँ तुझ से मिलकर...
फिर तन्हाई ने यकीन दिलाया के कितना अरसा गुज़ारा है तुझ से मिल कर..

अफ़सोस ये नहीं के अब साथ है तो बस यादें..
अफ़सोस इस बात का है के देखा नहीं तुमने पलटकर...

तुझ से सजा हर पल आज भी ज़हन में ताज़ा है...
कई रोज़ यूँ ही कट जाते है उनको सोच कर...

मैंने एक नज़्म तुम्हारे लिए बचा के रक्खी थी..
आज मर गयी वोह आ रहा हूँ उसको दफना कर..

तेरे आने के दिन नजदीक है 'पराशर'...
खुश है सबा, अब तेरे घर से गुजरकर...

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