अक्सर मैंने शाम को देखा है जब पूरे चाँद की रात आने को होती है...
जब उतरती है बादलों की सीडी से...
तो बड़ी ही खुशनुमा नज़र आती है...
जैसे अभी अभी नहा के निकली हो...
और चेहेरे पर एक सौंधी सी मुस्कान लिए घुमती है...
चारो ओर चाँद के आने की ख़ुशी बांटती है...
जैसे कोई दुलहन खुश होती है जब उसका पति जंग से लौटता है...
सितारों को थाली में समेट के साहिल पे खड़ी रहती है...
जब रात आये तो उसके बदन पे सितारों को रखकर कर मुस्कुराके देखती है...
जैसे कोई भगवान् पर फूल चढ़ाये...
ओर सूरज की नज़र न लगे इसलिए रात के माथे पे चाँद का टिका लगाकर...
रात की बाहों में यूँ समा जाती है जैसे दो रंग आपस में मिल जाते है..
और बस एक ही रंग दिखाई देता है...
जब उतरती है बादलों की सीडी से...
तो बड़ी ही खुशनुमा नज़र आती है...
जैसे अभी अभी नहा के निकली हो...
और चेहेरे पर एक सौंधी सी मुस्कान लिए घुमती है...
चारो ओर चाँद के आने की ख़ुशी बांटती है...
जैसे कोई दुलहन खुश होती है जब उसका पति जंग से लौटता है...
सितारों को थाली में समेट के साहिल पे खड़ी रहती है...
जब रात आये तो उसके बदन पे सितारों को रखकर कर मुस्कुराके देखती है...
जैसे कोई भगवान् पर फूल चढ़ाये...
ओर सूरज की नज़र न लगे इसलिए रात के माथे पे चाँद का टिका लगाकर...
रात की बाहों में यूँ समा जाती है जैसे दो रंग आपस में मिल जाते है..
और बस एक ही रंग दिखाई देता है...
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