सूरज भी एक आम आदमी की तरह जीता है हर रोज़...
सुबह जब उगता है तो जैसे योग कर रहा हो...
फिर दस बजे तक पूरा उग कर जैसे तैयार होके दफ्तर निकल रहा हो...
दोपहर जैसे चुप चाप किरणों के साथ खाना खा लेता है..
जब धीरे धीरे शाम नजदीक हो तो..
बादालों के साथ चाय पिता है और गप्पे लड़ता है....
और जब शाम बादलों से उतर कर आये...
तो दफ्तर समेट कर एक फूल हाथ में लिए उसको मिलने जाता है...
और शाम की बाहों में कुछ सब्ज़ लम्हे समेटता है...
और जब अँधेरा पीछे से आके दस्तक दे..
तो शाम को साहिल पे छोड़ के अपने घर निकल जाता है..
और घर वालों से मिलके चैन की नींद सो जाता है...
ऐसे करोड़ों सूरज रोज़ इसी तरह जीते है और भुज जाते है...
इंतज़ार है उस सुबह का जब सारे सूरज एक साथ उगे हो...
सुबह जब उगता है तो जैसे योग कर रहा हो...
फिर दस बजे तक पूरा उग कर जैसे तैयार होके दफ्तर निकल रहा हो...
दोपहर जैसे चुप चाप किरणों के साथ खाना खा लेता है..
जब धीरे धीरे शाम नजदीक हो तो..
बादालों के साथ चाय पिता है और गप्पे लड़ता है....
और जब शाम बादलों से उतर कर आये...
तो दफ्तर समेट कर एक फूल हाथ में लिए उसको मिलने जाता है...
और शाम की बाहों में कुछ सब्ज़ लम्हे समेटता है...
और जब अँधेरा पीछे से आके दस्तक दे..
तो शाम को साहिल पे छोड़ के अपने घर निकल जाता है..
और घर वालों से मिलके चैन की नींद सो जाता है...
ऐसे करोड़ों सूरज रोज़ इसी तरह जीते है और भुज जाते है...
इंतज़ार है उस सुबह का जब सारे सूरज एक साथ उगे हो...
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