Saturday, January 29, 2011

किश्त...

कभी कभी शाम को मिलती हो आसमां पे बिखरे रंग की तरह...
कभी सुबह नज़र आती हो कोहरे में छुपे सूरज की तरह...
कभी रात को मिलती हो सुनसान सन्नाटे की तरह...
देखती हो मेरी तरफ घूम कर तो वक़्त हैरान सा लगता है...
सुबह जब चुप चाप बैठती हो तो लगता है जैसे कोई परिंदा पर फैला के आसमां पे उड़ रहा है..
मेरे लतीफे पे ताली देती हो तो जैसे आबशार कोई पत्थर पे टूटे..
हंसती हो तो चुटकी में मौसम बदल जाता है, वोह जैसा सावन में बदलता है...
मिलता हूँ तुमसे तो जिंदगी आगे चलती है...
मेरी बातें सुनकर आँखों ही आँखों में न जाने क्या बुनने लगती हो..
जब जाती हो तो चुप के से जिंदगी एक पुडिया में बाँध कर मेरी जेब में रख जाती हो..
फिर ख्वाब में आकर उसको खोल के मुस्कुराती हो...
और जैसे जिंदगी का हर एक टुकड़ा अपनी सही जगह पे आके रुक जाता है...
और एक हसीन जिंदगी की तस्वीर नज़र आती है..
जैसे कोई 'collage' बनाये...
एहसान है तुम्हारा मुझपे...
रोज़ मिला करो जानम... के किश्तों पे तुम्हारा एहसान चूका पाऊँ....



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