Saturday, March 10, 2012

मै...

अक्सर सोचता हूँ के मै कौन हूँ...
इस जिस्म के कवच में जी रहा एक साँसों का दरिया हूँ?
या ख़याल के वजूद को हाथ में रख कर जी रहा कोई कर्म योगी हूँ?
देखता हूँ मेरे चारो तरफ तो हर चीज़ जैसे जिंदा है...
न पत्थर है मुर्दा न ये शाम-ओ-सेहेर बस चल रहे है...
कुछ तो वजह है जो यह सब है और सब चल रहा है...
कभी लगता है कोई खुदा है जिसने सब बनाया है..
पर न मैंने उसे देखा है न ही महसूस किया...
फिर क्यूँ मै यकीन करून खोकले विश्वास पर...
क्या मै जिस्म हूँ? क्या मै जेहेन हूँ?
पर देखता हूँ चारो तरफ तो एक जैसे है जिस्म-ओ-जेहेन..
एक से जज़्बात है एक सी ख़याल की शक्ल...
महसूस करता हूँ दुनिया को अपनी संवेदना से...
तो हर जिन्दा शय में मैंने बस मुझको ही पाया है...
हर चीज़ में बस मै हूँ... मै ब्रह्माण्ड हूँ...
मेरे ही जैसे सब है यहाँ सब के जैसा मै हूँ...
यह जिस्म-ओ-जेहेन भी मैंने ही बनाया...
बस एक है बनाने वाला जिसको हर इंसान में देखा है...
पूरे ब्रह्माण्ड की शक्ति का एक अंश हूँ मै...
हर जगह बस मै ही मै हूँ...
चारो तरफ बस मै हूँ....

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