Friday, March 23, 2012

दुआ...

सब कुछ बदल सा गया है...
और जो नहीं बदला वो अब नहीं है...
न जाने क्या कैफियत है... दुनिया तो वैसी ही लगाती है आज भी...
नज़र का फर्क है या ख़याल ने कोई नयी शक्ल ली है...
हवा बदन को छूती है तो बचपन में चला जाता हूँ...
जब माँ अपने गोदी में रख कर मुझको सुलाती थी...
हर शक्स से जैसे कोई गेहरा रिश्ता जुड़ गया है...
बेवजह की ख़ुशी पनपती है साँसों में...
कहीं काला जादू तो नहीं??
हर लम्हे में जैसे पूरा घुल गया हूँ... न कम न ज्यादा...
जिंदगी जैसे एक अटल निश्चय की तरह चलती है...
के अब और कोई उसे छेड़े तो खुद गिर जाए...
वो जो 'sense of humour' हुआ करता था...
कुछ रोज़ पहले ज़हन के कोने में फिर मिला है...
कुछ रिश्ते जो वक़्त की मार पड़ते पड़ते बूढ़े हो गए थे...
अब फिर दौड़ने लगे है...
वक़्त को मीलों में काटता हूँ... जो पहले पल की बैसाखी को पकड़ चलता था....
वो जो कुछ पल हुआ करते थे जिनको सारा दिन गुज़र जाने के बाद...
तकिये के कोने में खोल के महसूस करता था...
अब वोह जिंदगी की हकीकत में नज़र आते है...

न जाने किसकी दुआओं का असर है...
सुना है लोगो ने तुझे मस्जिद की तरफ जाते देखा था.....
 

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