Monday, February 27, 2012

सूरज...

हर रोज़ शाम को देखा है मैंने सूरज डूबते डूबते बड़ा ही मायूस रहता है...
पूरा दिन काम करके अपने घर लौटता है तो मुरझा सा जाता है...
पर जाते जाते आसमान पे अपने सुरमई रंग छोड़ जाता है..
जिसको शाम अपने चेहरे पे मल के चाँद का इंतज़ार करती है...
एक उम्मीद है इस लाल रंग में के कल फिर सवेरा होगा...
जैसे कोई मजदूर अपने घर लौटता है एक जेब में मायूसी और एक जेब में उम्मीद लिए...
शुक्र है सूरज अपना अनपढ़ गवार है...
पढ़ा लिखा होता तो देर रात तक काम करना पड़ता...
और दोनों जेबों में बस मायूसी होती....

No comments:

Post a Comment