बड़ा ही दिलचस्प शेहेर है दिल्ली..
कई नाम है इसके...
कोई दिल्ली कहता है और पुराने किले को सलाम करता है...
कोई delhi कह कर मेट्रो में सफ़र करता है...
दिल्ली ने बोहोत कुछ देखा है.. किसी तजुर्बेकार खिलाड़ी की तरह..
मुघलों की लडाइयां देखि..
मोहब्बत की अंगडाइयां देखि..
कांपती ठण्ड देखि...
पिघलती गर्मी देखि...
ठगों की सफाई देखि...
गुंडों की मनमानी देखि...
ग़ालिब की शायरी को देखा...
चांदनी चौक की चाट को देखा...
अनिल कुंबले के दस को देखा...
ब्लू लाइन की बस को देखा...
जमा मस्जिद की नमाज़ को देखा...
क़ुतुब मीनार की लम्बाई को देखा...
लाल किले पर तिरंगा देखा...
अक्षरधाम पे हमला देखा....
ये सब देख कर दिल्ली थक गयी है... रुक गयी है...
फिर किसी मोड़ पे उसने तुमको देखा...
और जैसे सारे आलम का दिल धड़क उट्ठा...
दिल्ली तुमसे सांस लेती है...
दिल्ली तुमसे आबाद है....
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