Monday, July 26, 2010

दिल्ली से delhi...

बड़ा ही दिलचस्प शेहेर है दिल्ली..

दिल से इब्तेदा होती है... दिल ही में रहती है... दिलवालों पे इन्तेहा..
कई नाम है इसके...
कोई दिल्ली कहता है और पुराने किले को सलाम करता है...
कोई delhi  कह  कर  मेट्रो  में  सफ़र  करता है...

दिल्ली  ने बोहोत कुछ देखा है.. किसी तजुर्बेकार खिलाड़ी की तरह..

मुघलों की लडाइयां देखि..
मोहब्बत की अंगडाइयां देखि..

कांपती ठण्ड देखि...
पिघलती गर्मी देखि...

ठगों की सफाई देखि...
गुंडों की मनमानी देखि...

ग़ालिब की शायरी को देखा...
चांदनी चौक की चाट को देखा...

अनिल कुंबले के दस को देखा...
ब्लू लाइन की बस को देखा...

जमा मस्जिद की नमाज़ को देखा...
क़ुतुब मीनार की लम्बाई को देखा...

लाल किले पर तिरंगा देखा...
अक्षरधाम पे हमला देखा....

ये सब देख कर दिल्ली थक गयी है... रुक गयी है...
फिर किसी मोड़ पे उसने तुमको देखा...
और जैसे सारे आलम का दिल धड़क उट्ठा...

दिल्ली तुमसे सांस लेती है...
दिल्ली तुमसे आबाद है....

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