सुबह से एक काला बादल मेरा पीछा कर रहा था...
पीछा करते करते मेरे घर की खिड़की पे आके रुक गया...
किसी कुत्ते के पिल्ले की तरह जो अपनी माँ से बिछड़ गया हो...
न जाने क्या आरज़ू थी उसकी बड़ी आस लगा के ताकता रहा मुझको...
फिर एक हवा का झोंका आके मेरे कानो में चुपके से कह गया...
सावन का भटका बादल है उसे अपनी मंजिल तक पहुंचा दो...
फिर जब हवाओं पे पैर रखकर शाम उतरी...
तो मेरी हैरत की निगाह जो उस बादल पर थी मददगार हो उठी...
हवाओं के हाथों संदेसा भिजवाया उस बादल को...
की मेरे पीछे पीछे चलता रहे...
फिर जब चाँद निकला गोधुली में...
तो उस बादल को तेरे घर के ऊपर छोड़ आया था....
हर बादल की ख्वाहिश रहती थी तेरी छत पे बरसने की...
सुना है कल रात बारिश हुई थी सिर्फ तेरे ही घर पर जब तुम मुस्कुराती आँगन में आई थी...
खुदा का कोई करिश्मा समज कर लोगो ने शाम की नमाज़ तेरे दर पे ही अदा करदी...
बारिश भी दीवानी है तेरी...
बादलों का कम्बल ओढ़े किसी डाकू की तरह तुझे मुस्कुराता देखने चली आती है सावन में...
बहुत सुंदर पर किसी डाकू की तरह क्यूं, इतने कोमल अहसासों के साथ ये डाकू शब्द कुछ अच्छा नही लगा ।
ReplyDeletethanks asha ji...
ReplyDeletepar yeh ek kalpana hai jisme baarish mujhe dhoka de rahi hai... baadalon ki aad me chup kar aai thi.. theek usi tarah jis tarah purani filmon me daaku gaon me aate the apni mehbooba se milne... :-) :-)
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ReplyDeletekhoobsoorat hai behad...achhi imagination
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
सुदर जज्बात अच्छी रचना, बारिश का सुंदर सा एहसास
ReplyDeleteSuperb write up and all of these lines are really beautiful and nice.
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