ऐ खुदा चल किसी दिन साहिल पे बैठ के ज़िन्दगी की बाज़ी लगाये ..
शतरंज की बिसात पर फैसला करें की कोंन ले जाएगा ज़िन्दगी को...
तू अपनी मर्ज़ी से मुश्किलें बीछा मेरी राह में...
मै अपने यकीन से उनको पार कर लूँगा...
मेरे वजूद को मिटाने की कोशिश तू जारी रख...
मै हर एक दिन नया जनम लेके फिर आ जाऊंगा ...
मेरे हर रिश्ते को बाज़ार में नीलाम करदे...
मै हर एक मोड़ पे रिश्तों को महफूज़ कर के आगे बढ़ जाऊंगा...
मेरे सफ़र के हर मोड़ पे दो राहें पेश कर...
मै हर बार तजुर्बे से सही राह चुन लूँगा...
दहकती आग लाके रखदे, बर्फीली हवाएं चलवा...
जीने की तमन्ना से मै हर वार को सह लूँगा...
और जब तू आखरी चाल चलेगा मौत की...
तो उसकी तस्वीर दिखा कर मौत से भी बच निकलूंगा...
यूँ भी होगा इक दिन...
और फिर ज़िन्दगी मेरा हात थामकर मुझसे कहेगी मुस्कुराकर...
चलो उठो अभी तो बोहोत सफ़र बाकी है...
यूँ भी होगा इक दिन.. ज़िन्दगी फिर चल पड़ेगी...
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