मैंने तुम्हारा एक स्केच 'frame' करना चाहता हूँ
पर जैसे ही 'frame' करता हूँ...
रंग फिंके पड़ जाते है..
आँखों की चमक उड जाती है...
कागज़ के टुकड़े पत्तो की तरह हवा में बिखर जाते है...
कांच टूट के तिनको में समां जाती है...
सच में... तेरे हुस्न को एक 'frame' में बांधे रखना कितना मुश्किल है...
पर जैसे ही 'frame' करता हूँ...
रंग फिंके पड़ जाते है..
आँखों की चमक उड जाती है...
कागज़ के टुकड़े पत्तो की तरह हवा में बिखर जाते है...
कांच टूट के तिनको में समां जाती है...
सच में... तेरे हुस्न को एक 'frame' में बांधे रखना कितना मुश्किल है...
बहुत खूब!
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