आखिर कार वोह आ गयी...
बिजली के तारों से बचते बचाते..
पेड़ों की शाखों से नज़र चुराके...
बादलों के पिंजरे से आजाद...
लम्बी लम्बी इमारतों से कूद के..
घरों के छज्जों से फिसल के....
बारिश की वोह पहली बूँद... कुछ इस तरह आती है ज़मीन पर...
जैसे कोई बच्चा स्कूल से लौटता है और कल से उसकी छुट्टियाँ चालू होने वाली हों...
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