Thursday, June 17, 2010

रौशन करें कायनात....

देर रात जब बोहोत जोरों से बरसात हो.. 
तो चलेंगे ऊपर बादलों पर...
बादलों पर बैठ के देखे हम निचे की बरसात का नज़ारा.. 
और जब 'street lights' बंद हो जाए मुंबई के 'highway' पर...
तो अपनी परछाई देखे गीली सी रोड पर...
फिर जब सूरज निकले तो कई हज़ार बूंदों की बना के 'water slide'...
कूद पड़े दरिया में छपक के...
और तैरते रहे मछलियों की तरह गहरे दरिया में...
मोतियों की खोज में...
फिर जब बारिश बंद हो और एक मद्धम सी हवा चले साहिल पे...
अपने बदन को सुखाते हुए पड़े रहे आसमान को तकते किनारे पर...
फिर जब दोपहर गुजरे सर पर से किसी परिंदे की तरह और शाम आये थकी हारी काम पर से लौटी औरत की तरह...
गूम हो जाएँ उस सुरमई रोशनी में और दिखाई न दे...
चलो न उसी रोशनी से रौशन करे कायनात और बस मुस्कुराते रहे....
और बस मुस्कुराते रहे...

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